लोकायुक्त की कार्रवाई में पकड़ाया फ़र्ज़ी आरआई, 20 हजार की मांगी थी रिश्वत

डबरा,सलिल श्रीवास्तव। लोकायुक्त ग्वालियर ने आज एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते हुए फर्जी आरआई बन कर लोगों को ठगने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है। लोकायुक्त पुलिस आरआई द्वारा रिश्वत लेने की शिकायत पर कार्रवाई करने पहुंची थी पर जब उन्हें पता लगा कि जिस पर उन्होंने कार्रवाई की है वह आरआई ही नहीं है, तो वह सकते में आ गई। क्योंकि अमूमन लोकायुक्त सिर्फ शासकीय कर्मियों पर ही कार्रवाई करती है यह पहला मौका होगा जब लोकायुक्त ने अशासकीय व्यक्ति पर कार्रवाई की है फिलहाल इस मामले में फर्जी आरआई सोबरन सिंह,रिटायर्ड एसएलआर बलराम मोदी,एसएलआर ग्वालियर रविनंदन तिवारी को आरोपी बनाया गया है वह पूरी कार्रवाई लोक सेवा केंद्र डबरा में अंजाम दी गई।

बता दें कि लोक सेवा केंद्र डबरा में पदस्थ लखपत सिंह की भूमि घाटीगांव अनुभाग के ग्राम सिमरिया टाका में है, जहां नक्शा दुरुस्त कराने के लिए आरआई बनकर सोबरन सिंह रजक द्वारा ₹20,000 की रिश्वत की मांग की गई थी। जिसकी शिकायत लखपत सिंह ने पुलिस अधीक्षक ग्वालियर को की थी। मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस अधीक्षक ने मामले को लोकायुक्त के हवाले करते हुए आदेशित किया था, जिस पर आज लोक सेवा केंद्र डबरा कार्यालय पर सोबरन सिंह रजक को लोकायुक्त पुलिस ने ₹20,000 की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया। जब लोकायुक्त ने सोबरन सिंह रजक से कड़ाई से पूछताछ की तो लोकायुक्त पुलिस के होश उड़ गए और उसने बताया कि मैं तो एक मोहरा हूं वह तो काम रिटायर एएसएलआर बलराम मोदी एवं एसएलआर ग्वालियर रविनंदन तिवारी के लिए करता है।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।