Mahabharat Interesting Facts : महाभारत ग्रंथ के बारे में तो हर किसी ने सुना होगा। इसमें द्वापर युग में हुई युद्ध का विस्तृत वर्णन है। यह न केवल एक युद्ध की कहानी है, बल्कि इसमें धर्म, अधर्म, नीति और समाज से संबंधित अन्य कई पहलुओं पर चर्चा पाया जाता है। जिसमें लगभग एक लाख श्लोक है।
महाभारत की लड़ाई कुरुक्षेत्र में लड़ी गई थी, जो धर्म युद्ध थी। इसमें एक ही परिवार के सदस्यों ने आपस में लड़ाई की थी। जिसमें कौरव और पांडव शामिल है। वहीं, भगवान श्री कृष्ण पांडवों के मार्गदर्शन और अर्जुन के सारथी बने थे।
इंटरेस्टिंग फैक्ट्स
बता दें कि यह लड़ाई 18 दिनों तक लड़ी गई थी, लेकिन इसके आरंभ होने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के मन में चल रही दुविधाओं को समाप्त करने के लिए गीता का उपदेश भी दिया था। इसके बाद यह लड़ाई प्रारंभ हुई थी। जिसमें पांडवों को जीत हासिल हुई। इसके बाद युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर की राजगद्दी को संभाल था।
कौन था दुर्योधन?
अक्सर महाभारत का जब जिक्र किया जाता है या फिर फिल्म, सीरियल में जब हम महाभारत कथा को देखते हैं, तो इसमें दुर्योधन को सबसे बड़ा अधर्मी दिखाया या बताया जाता है। महाभारत ग्रंथ के अनुसार, अधर्म, अनैतिक, असत्य के मार्ग पर चलने वाला दुर्योधन बहुत बड़ा दुराचारी था, जो राज-पाठ की मोह माया में इस कदर डूब गया था कि उसे अपने सामने होने वाली गलत चीजों का एहसास नहीं था। वह लगातार मामा शकुनि के मार्गदर्शन पर गलती, अधर्म किए जा रहा था। वह अपने राज्य की एक नोक भर जमीन भी अपने चचेरे भाई पांडवों को नहीं देना चाहता था, जिस कारण यह लड़ाई लड़ी गई थी।
कैसे मिला स्वर्ग लोक?
इसके बावजूद, जब दुर्योधन की मृत्यु हुई तब उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई थी। जी हां, आपको यह सुनकर बड़ा ही अजीब लग रहा होगा क्योंकि किसी भी धर्म ग्रंथ में इस बात का जिक्र पाया जाता है कि लोगों को उनके कर्मों के हिसाब से स्वर्ग या नरक मिलता है। ऐसे में अधर्मी दुर्योधन को स्वर्ग लोक कैसे मिल सकता है। यह सवाल मन में खटक रहा होगा।
पांडव हुए अचंभित
महाभारत कथा के अनुसार, अपने जीवन काल को पूरा करने के बाद जब धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे, तो उन्होंने वहां पर दुर्योधन को देखा। जिसे देखकर वह बिल्कुल अचंभित रह गए। तब नारद मुनि ने युधिष्ठिर से कहा दुर्योधन यहां स्वर्ग लोक में इसलिए है, क्योंकि उसने धर्म और अधर्म की लड़ाई में निष्ठा के साथ वीरगति की प्राप्त की। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए उसने पांडवों के साथ लड़ाई की थी, जिस कारण उसे स्वर्ग लोक मिला।
इधर, दुर्योधन को स्वर्ग में देखकर बाकी अन्य पांडव भी अचंभित रह गए थे। सभी के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा था कि दुर्योधन यहां कैसे? जिसका जवाब देते हुए युधिष्ठिर ने बताया कि भले ही दुर्योधन अधर्मी रहा हो, लेकिन उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था, जिसे पाने के लिए उसने पूरी निष्ठा से हर संभव प्रयास किया। दृढ़ संकल्प से एक मार्ग पर चलने वाले दुर्योधन की अच्छाई के कारण वह स्वर्ग लोक पहुंचा है।
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