Shani Dev : शनि देव को सूर्यपुत्र कहा जाता है क्योंकि वे सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। उन्हें अनुराधा नक्षत्र का स्वामी माना जाता है। मान्यता है कि वे मनुष्यों और देवताओं के साथ भी उचित न्याय करते हैं और किसी के साथ अन्याय नहीं करते। शनि देव की पूजा करने से व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है। उनके आशीर्वाद से लोग अपने बुरे कर्मों के प्रभाव से मुक्ति पा सकते हैं और अच्छे कर्मों के द्वारा सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
डरने की है जरूरत?
शनि देव को कर्मफलदाता और दंडाधिकारी कहा जाता है क्योंकि वे हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। वे न्याय के देवता हैं, जो अच्छे कर्मों के लिए शुभ फल और बुरे कर्मों के लिए दंड प्रदान करते हैं। इसलिए शनि देव से डरने की आवश्यकता केवल उन लोगों को है जो बुरे कर्म करते हैं और अन्यायपूर्ण आचरण में लिप्त रहते हैं। जो लोग सच्चाई, धर्म और सदाचार का पालन करते हैं, उन्हें शनि देव से डरने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि शनि देव की पूजा और उपासना करने से व्यक्ति को अपने जीवन में सुकून, समृद्धि मिल सकता है।
स्कन्द पुराण में है विवरण
स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में शनि देव द्वारा अपने पिता सूर्य देव से मांगे गए वरदान का विवरण मिलता है। जिसमें शनि देव ने सूर्य देव से यह इच्छा प्रकट की थी कि उन्हें ऐसा अद्वितीय पद प्राप्त हो जिसे आज तक किसी ने न पाया हो। उन्होंने यह भी कहा कि उनका मंडल सूर्य के मंडल से सात गुना बड़ा हो और उनकी शक्ति भी सूर्य देव से सात गुना अधिक हो। इसके अलावा, उनके वेग का कोई सामना न कर पाए, चाहे वह देव, असुर, दानव या सिद्ध साधक ही क्यों न हो। शनि देव ने यह भी चाहा कि उनका लोक सूर्य के लोक से सात गुना ऊंचा हो। दूसरे वरदान के रूप में शनि देव ने भगवान कृष्ण के दर्शन की इच्छा प्रकट की और यह भी चाहा कि वे भक्ति, ज्ञान और विज्ञान से पूर्ण हो जाएं।
सूर्य देव हुए प्रसन्न
शनि देव की इच्छाएं सुनकर सूर्य देव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद देते हुए कहा कि वह भी चाहते हैं कि शनि देव उनसे सात गुना अधिक शक्तिशाली हों और उनके प्रभाव को कोई सहन न कर पाए। साथ ही इसके लिए सूर्य देव ने शनि देव को काशी जाकर तप करने और वहां भगवान शिव की तपस्या करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि काशी में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान शिव को प्रसन्न करने से शनि देव को उनकी मनवांछित इच्छाएं अवश्य प्राप्त होंगी। सूर्य देव के आदेश का पालन करते हुए शनि देव ने काशी में जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की और शिवलिंग की स्थापना की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मनोवांछित वरदान प्रदान किए। यही शिवलिंग आज काशी-विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह शिवलिंग न केवल शनि देव की तपस्या और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह भगवान शिव की कृपा और उनके आशीर्वाद का भी प्रतीक है। काशी-विश्वनाथ मंदिर, जो वाराणसी में स्थित है, हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने आते हैं।
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