Bhagavad Gita : भगवत गीता प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ है जो महाभारत काल से जुड़ा है। यह ग्रंथ महाभारत के युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उसके धर्म और कर्म की समझ और सहायता के लिए दिया गया उपदेश है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके जीवन में आने वाले धार्मिक, नैतिक और आध्यात्मिक संघर्षों को समझाया और उसे मार्गदर्शन किया। भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विभिन्न तत्त्वों जैसे कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया। भगवत गीता का अध्ययन मानव जीवन में संतुलन और ध्यान की अवश्यकता को समझाने में मदद करता है। साथ ही सही और उचित कर्म करने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
मृत्यु
भगवत गीता में मृत्यु के विषय में बात की गई है। गीता में मृत्यु को एक प्राकृतिक हिस्सा माना गया है। श्रीकृष्ण के अनुसार, जीवन और मृत्यु एक प्राकृतिक प्रक्रिया हैं जिन्हें सभी मनुष्यों को अपनाना पड़ता है। गीता में बताया गया है कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए जीना चाहिए और मृत्यु के भय से मुक्त होकर सच्ची खुशियों का आनंद उठाना चाहिए।
क्रोध
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में क्रोध के प्रति संयम रखने की महत्ता पर जोर दिया है। गीता में कहा गया है कि क्रोध मनुष्य को बुरी दिशा में ले जाता है और बुद्धि का विनाश कर देता है। इससे हमारी बुद्धि काम नहीं करती है और हम सही निर्णय लेने में अक्षम हो जाते हैं। गीता के अनुसार, क्रोध में किए गए निर्णय हमेशा गलत होते हैं और व्यक्ति को इसके लिए पछताना पड़ता है। इसलिए क्रोध को नियंत्रित करें।
कर्म
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में कर्म के महत्त्व को बताया है। वे कहते हैं कि कर्म अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और व्यक्ति को अपने कर्म के माध्यम से आगे बढ़ना चाहिए। गीता में बताया गया है कि हमें कर्म करते रहना चाहिए। अपने कर्म के माध्यम से समाज, परिवार और समुदाय के हित में योगदान भी देना चाहिए।
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