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Mon, Dec 15, 2025

गणपति बप्पा का अनोखा मंदिर, जहां भगवान गणेश अपने परिवार के साथ हैं विराजमान!

Written by:Sanjucta Pandit
भारत में गणेश चतुर्थी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में विशेष रौनक रहती है। इसी कड़ी में राजस्थान के रणथंभौर किले का त्रिनेत्र गणेश मंदिर खास महत्व रखता है, जहां गणपति बप्पा पूरे परिवार संग विराजते हैं।
गणपति बप्पा का अनोखा मंदिर, जहां भगवान गणेश अपने परिवार के साथ हैं विराजमान!

भारत में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के पश्चिमी राज्यों में यह 10 दिनों तक चलता है, वहीं पूर्वी राज्यों की बात करें तो दो से तीन दिन भगवान की पूजा अर्चना की जाती है और अंत में विसर्जन के साथ विदाई दी जाती है। इस पूरे 10 दिन शहरों में भक्ति का माहौल रहता है। खासकर महाराष्ट्र और गुजरात समेत मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में गणपति बप्पा हर घर में विराजते हैं। वहीं, गली-मोहल्ले में बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं और भगवान की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनका सुबह-शाम विधिपूर्वक पूजा अर्चना भी होता है।

इसके अलावा देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां भगवान गणेश की पूजा अर्चना होती है। उनके दर पर जाने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है।

शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, गणेश उत्सव 27 अगस्त से प्रारंभ होगा, जिसका समापन अनंत चतुर्दशी के दिन यानी 6 सितंबर 2025 को होगा।सनातन धर्म में भगवान गणेश का अपना अलग ही स्थान है। भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने जाते हैं क्योंकि वे अपने भक्तों पर आने वाले सभी संकट को हर लेते हैं। इसके अलावा, वे बुद्धि, विवेक और समृद्धि के देवता कहे जाते हैं। गणपति जी को गजानन, गणपति, विनायक, विघ्नेश्वर, वक्रतुंड, लंबोदर, एकदंत और सिद्धिदाता के नाम से जाना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। वे सफलता, समृद्धि और सिद्धि के दाता माने जाते हैं। छात्रों को खासकर भगवान गणेश की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

त्रिनेत्र गणेश मंदिर

हालांकि, आज हम आपको एक ऐसी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में अनोखा है। दरअसल, इस मंदिर का नाम त्रिनेत्र गणेश मंदिर है, जो कि राजस्थान के रणथंभौर किले में स्थित है। यहां की खास बात यह है कि देशभर के ज्यादातर मंदिरों में गणेश जी अकेले विराजते हैं, लेकिन यहां वह पत्नियों रिद्धि-सिद्धि और पुत्रों शुभ-लाभ के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं। यहां गणेश जी के तीसरे नेत्र को ज्ञान और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

इतिहास

माना जाता है कि 13वीं सदी के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर किले को घेरा, तब राजा हम्मीर अनाज की किल्लत से परेशान थे। संकट की घड़ी में उन्हें स्वप्न में गणेश जी के दर्शन हुए और अगले दिन चमत्कारिक रूप से त्रिनेत्र वाली प्रतिमा प्रकट हुई। राजा ने इसे ईश्वरीय संकेत मानते हुए सन् 1300 में इस मंदिर का निर्माण कराया।

मान्यता

इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त गणेश जी को चिट्ठियां लिखकर अपनी समस्याएं और इच्छाएं बताते हैं, उनकी समस्या भगवान हर लेते हैं। बता दें कि रोजाना हजारों पत्र यहां पहुंचते हैं और पुजारी उन्हें बप्पा के चरणों में अर्पित कर देते हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन से लिखी गई प्रार्थना का उत्तर गणपति अवश्य देते हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)