भोपाल, नागेश्वर सोनकेसरी। संकट के समय या जीवन में आप किसी भी बुरे दौर से गुजर रहें हों तो निराशा व नकारात्मकता तुरंत हावी होने लगती है। सुबह उठते ही आपके मन में पहला विचार ही इस तरह का होता है। संकट कोई चुनौती नहीं अपितु हमारे ही कर्मों का प्रारब्ध है। जिसे समय-समय पर कर्मानुसार हमें भुगतना पड़ता है। संकट में सहने, समझने, गुजरने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं होता है, लेकिन फिर भी ईश्वर शरणागति व दृढ़ इच्छाशक्ति ही वह माध्यम है जिससे हम अपेक्षाकृत अधिक सुगमता से गुजर पाते हैं।
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कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमारे पास प्रतिभा होती है व कार्यकुशलता भी तथा अच्छा अनुभव भी लेकिन समय अनुकूल नहीं होता है। ऐसी स्थिति में हमारी प्रतिभा बहुत प्रभावकारी नहीं हो पाती है। हम चाहे जितना भी प्रयास कर लें, लेकिन हमें सफलता नहीं मिलती और हम एक या दो प्रतिशत से ही चूक जाते हैं, और निराश भी होते हैं। लेकिन ऐसे समय पर भी हम स्वयं को सकारात्मक विचारों के संपर्क में रख सकें व नकारात्मक विचारों को अपने से दूर रखें तो हम देखेंगे कि भविष्य में हमें सफलता अवश्य मिलेगी।
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अत: कभी भी, कहीं पर भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम किसी एक अवसर में हारते हैं तो ऐसा नहीं है कि हम पूरी जिन्दगी में हार गए हों, और ऐसा भी नहीं है कि हमारा समय समाप्त हो गया है। लेकिन ऐसे अवसरों पर मिलने वाली निराशा व नकारात्मकता के संपर्क में हम अपनी जिन्दगी को जरूर अंधकार में धकेल देते हैं।
जीवन के बुरे दौर में सबसे अधिक सावधान होने की जरूरत है तो नकारात्मकता विचारों की श्रंखला से, यदि हमारे जीवन में इसका प्रवेश हो गया तो निश्चित ही उससे हम असफल ही होते चले जाते हैं, फिर सफल नहीं हो पाते हैं। अत: किसी भी परिस्थिति में हमें अपने सकारात्मक विचारों की श्रंखला को बनाए रखना चाहिए।
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निराशा के दौर में हमें ईश्वर से सतत प्रार्थना के साथ-साथ, भजन-पूजन नित्य नियम बनाकर करना चाहिए, साथ ही स्वाध्याय को जीवन का अभिन्न अंग बना लेना चाहिए क्योंकि यही एक ऐसा माध्यम है जिससे हमारा मस्तिष्क शुभ और सृजनात्मक विचारों से परिपोषित होता है। मैं वर्तमान में इसी का लाभ उठा रहा हूँ, आप भी गौर फ़रमाइएगा।