MahaKumbh Mela 2025 : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 144 साल बाद महाकुंभ लगने जा रहा है और देश दुनिया से श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया है। कुंभ मेला प्रत्येक बारह साल में चार पवित्र स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। वहीं, महाकुंभ 144 वर्षों में एक बार होता है और ज्योतिषीय गणना के आधार पर इसकी आयोजन तिथि और वर्ष निर्धारित होता है। महाकुंभ को लेकर कई तरह की धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं।
पौराणिक मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा, क्षिप्रा, गोदावरी और संगम में स्नान करने से आत्मा पवित्र होती है। इसे पापों का नाश करने और मोक्ष प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय माना जाता है। महाकुंभ में बड़ी संख्या में साधु-संत, नागा साधु और विभिन्न अखाड़ों के लोग शामिल होते हैं। कुंभ मेले में सत्संग, प्रवचन, और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जो इसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बनाता है।
महाकुंभ से जुड़ी अमृत मंथन की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। मंथन के दौरान कई रत्न, अन्य अनमोल वस्तुएं और अमृत कलश निकले। अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ। इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अमृत को देवताओं को बांटा।
कथा के अनुसार, इस युद्ध और मोहिनी के रूप में अमृत वितरण के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं। यह माना जाता है कि अमृत की यह बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इन स्थानों पर गिरने वाली अमृत की बूंदों के कारण इन स्थानों को अत्यधिक पवित्र माना जाता है और इसीलिए कुंभ मेले का आयोजन इन्हीं स्थानों पर किया जाता है।
ज्योतिषीय महत्व की कथा
महाकुंभ का आयोजन विशेष ज्योतिषीय संयोग के आधार पर होता है, जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक विशेष स्थिति में होते हैं। इस समय के दौरान आकाशीय ग्रहों की स्थिति और गति में एक अद्भुत संतुलन होता है, जिसे आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे “सर्वश्रेष्ठ पुण्य अवसर” के रूप में देखा जाता है, क्योंकि इस समय का प्रभाव व्यक्ति के जीवन और आत्मा पर गहरा असर डालता है। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिषीय स्थितियों के दौरान कुंभ में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सप्तऋषियों की कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, महाकुंभ के समय सात ऋषि (सप्तऋषि) ब्रह्म, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, पुलस्त्य, पुल्ह और कश्यप पृथ्वी पर आते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। महाकुंभ के दौरान जब लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं, तब यह विश्वास होता है कि सप्तऋषि अपने दिव्य रूप में वहां उपस्थित होते हैं और भक्तों के पापों का नाश करते हैं। यह धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि माना जाता है कि इन ऋषियों के दर्शन से मनुष्य को आत्म-ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
साथ ही, कुछ पुराणों में यह वर्णन भी मिलता है कि महाकुंभ के समय जब पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है तो सप्तऋषि अन्य ऋषियों के रूप में आते हैं और आशीर्वाद देते हैं। उनके आशीर्वाद से भक्तों को जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण
एक अन्य कथा के अनुसार, गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण राजा भगीरथ की तपस्या के परिणामस्वरूप हुआ। राजा भगीरथ एक महान और सच्चे भक्त थे, जो अपने पूर्वजों के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का कठिन कार्य करना चाहते थे। राजा के पूर्वजों को उनकी मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान नहीं मिल पा रहा था, क्योंकि उनकी आत्माएं पापों से ग्रस्त थीं और वे गंगा के पवित्र जल के बिना शुद्ध नहीं हो सकती थीं। उन्होंने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे गंगा को पृथ्वी पर लाने की अनुमति मांगी। ब्रह्मा जी ने भगीरथ की तपस्या से संतुष्ट होकर गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वचन दिया।
लेकिन गंगा की धारा इतनी प्रचंड थी कि पृथ्वी पर आने पर वह तबाही मचाने की आशंका थी। गंगा की प्रबल धारा को पृथ्वी पर उतारने के लिए भगवान शिव से सहायता ली गई। शिव जी ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया ताकि गंगा की धारा पृथ्वी पर शांति से बह सके। इसके बाद, गंगा ने अपनी धारा शिव जी की जटाओं से मुक्त होकर धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहना शुरू किया, और इस प्रकार गंगा नदी पृथ्वी पर आई। महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करना पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह गंगा का महत्व और उनकी पवित्रता का स्मरण कराता है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न धार्मिक पौराणिक स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)