Dev Uthani Ekadashi 2024: हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है, जो इस साल 12 नवंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना का विशेष महत्व होता है। इस पवित्र दिन माना जाता है, जब प्रति अपनी साधना और तपस्या से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
देव उठानी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि और भाग्य में सुधार आता है। इस दिन व्रत कथा का पाठ भी अनिवार्य होता है, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। यह कथा भगवान विष्णु की महिमा और व्रत के लाभ को समझाती है।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा
यह कहानी एकादशी के व्रत और भगवान विष्णु की सच्ची भक्ति के महत्व को बखूबी दर्शाती है। एक बार एक व्यक्ति ने एकादशी का व्रत किया लेकिन केवल फलाहार करके उसकी भूख शांत नहीं हो पाई। भूख से परेशान होकर वह राजा के पास गया और भोजन मांगने लगा। उसने राजा से कहा कि फलाहार से उसकी भूख नहीं मिट रही है और ऐसे वह भूखा मर जाएगा, इसलिए उसे भोजन दिया जाए। राजा ने उससे शर्त लगाई, कि वह केवल तभी उसे भोजन देगा जब वह नियमों का पालन करेगा।
उसे व्यक्ति ने कहा कि वह भूखा मर जाएगा और उसे अन्य की सख्त जरूरत है राजा ने उसकी बात मानते हुए उसे आटा, दाल और चावल दिलवाया। वह व्यक्ति नदी किनारे स्नान करने गया और वहां भोजन तैयार किया। फिर उसने भगवान विष्णु को भोजन के लिए निमंत्रण दिया, जब वह निमंत्रण दे रहा था भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और भोजन किया। फिर वह वहां से चले गए और वह व्यक्ति फिर से अपने काम में लग गया।
समय के साथ अगली एकादशी आई। इस बार व्यक्ति ने राजा से और अधिक अनाज की मांग की क्योंकि पिछली बार भगवान ने भोजन किया था जिसके कारण वह भूखा रह गया था। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि पिछले भजन ने जितना अनाज था उससे उसका पेट भर नहीं पाया था राजा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह चकित हो गया। तब वह व्यक्ति को अपने साथ लेकर नदी किनारे गया जहां उसने फिर से स्नान करके भोजन तैयार किया और भगवान विष्णु को निमंत्रण दिया।
लेकिन इस बार भगवान विष्णु नहीं आए वह व्यक्ति शाम तक भगवान का इंतजार करता रहा लेकिन जब वह नहीं आए तो उसने भगवान से कहा हे भगवान यदि आप भोजन नहीं करेंगे तो मैं नदी में कूद कर जान दे दूंगा जैसे ही वह नदी में कूदने के लिए आगे बड़ा भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने भोजन किया। इसके बाद भगवान ने उसे व्यक्ति पर अपनी कृपा दिखाई और उसे अपने धाम लेकर।
यह सब देखकर राजा ने समझ लिया कि भगवान भक्ति का आडंबर नहीं बल्कि सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से प्रसन्न होते हैं। इसके बाद राजा ने भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करना शुरू किया और जीवन के अंत में उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। भगवान के दर्शन और उनकी कृपा केवल सच्ची भक्ति से ही प्राप्त होती है ना कि दिखावे से।
Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।