Rakshabandhan 2023: रक्षाबंधन के बाद राखी का क्या करें, कितने दिन रहना चाहिए कलाई पर?

Atul Saxena
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Rakshabandhan 2023 : सावन की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाले रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्यौहार है, इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हा और फिर भाई उसे उसकी रक्षा का वचन देता है, भले ही इस त्यौहार पर आज बाजारवाद का प्रभाव दिखने लगा है लेकिन वैदिक काल से  इसमें छिपे भाव अभी भी नहीं बदले हैं, बड़ी बात ये है कि राखी के इस त्यौहार को सिर्फ हिंदू ही  नहीं दूसरे धर्म के लोग भी मनाने लगे हैं।

राखी के कच्चे धागों का मजबूत बंधन है रक्षाबंधन 

हम यहाँ रक्षाबंधन के त्यौहार के छिपे भाई बहन के अटूट रिश्ते को मजबूत करने वाले कच्चे धागे (पहले के ज़माने में कच्चे धागे की राखी बहन बनाती थी और उसे भाई की कलाई पर बांधती थी) के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, आज इस प्रगतिवादी और विज्ञापनवादी दौर में कच्चे धागे से बनने वाली राखियां फेंसी हो गई है लेकिन इसका भाव अभी वही है।

राखी बंधने के बाद जल्दी उसे उतार देना होता है अशुभ 

रक्षाबंधन के दिन शुभ मुहूर्त में भाई की कलाई पर बहन राखी (Rakhi 2023) बांधती है, लेकिन कई बार देखने में आता है कि कुछ भाई राखी बंधने के थोड़ी देर बाद या फिर कुछ घंटे बाद अपनी कलाई से राखी को उतार देते है, ये गलत और अशुभ  है, हम यहाँ आपको बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र और मान्यताएं क्या कहती है, भाई को कब अपनी कलाई से राखी उतारना चाहिए।

ये कहता है ज्योतिष शास्त्र 

  • जानकारों के अनुसार शास्त्र कहता है कि कम से 21 दिन तक राखी कलाई पर बंधी रहनी चाहिए।
  • यदि 21 दिन तक राखी बांधे रखना संभव नहीं हो तो जन्माष्टमी तक राखी कलाई पर बंधी रहना चाहिए।
  • 21 दिन या फिर जन्माष्टमी के बाद जब राखी कलाई से उतारें तो उसे लाल कपड़े में बांधकर ऐसे स्थान पर रखें जहाँ बहन की और चीजें रखी हो या घर में किसी पवित्र स्थान पर रखें।
  • इस रक्षा सूत्र को साल भर संभालकर रखना चाहिए फिर अगले साल जब रक्षाबंधन आये तो इसे पवित्र जल या फिर नदी में प्रवाहित कर दें।

(Disclaimer: इस आलेख में ली गई जानकारी अलग आलग जगह से ली गई एक सामान्य जानकारी है। MP  Breaking News इन बातों की पुष्टि नहीं करता। इसे अपनाने से पहले विशेषज्ञों से परामर्श जरूर लें)


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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