शरद पूर्णिमा को क्यों कहते हैं कोजागिरी पूर्णिमा ! जानिए इससे जुड़ी मान्यताएं, महत्व और धार्मिक कथाएं

शरद पूर्णिमा का संबंध देवी लक्ष्मी और चंद्रमा से है। ये मां लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति का दिन माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। इसलिए, इस तिथि को धनदायक माना जाता है। साथ ही, इस त्योहार में रात में चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें विशेष लाभकारी होती हैं और इसी वजह से उसकी रोशनी में खीर रखी जाती है।

Sharad Purnima : आज शरद पूर्णिमा है जिसे “कोजागिरी पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार ये त्योहार आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है जो आमतौर पर अक्टूबर के महीने में पड़ता है। इस त्योहार में रात के समय चंद्रमा की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणें विशेष होती हैं और यह स्वास्थ्य और समृद्धि लाने में मदद करती हैं। साथ ही इसे धन की देवी लक्ष्मी की पूजा के साथ भी जोड़ा जाता है।

आज की रात चंद्रमा के प्रकाश में खीर रखने की परंपरा है। यह परंपरा धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। रातभर खीर को चंद्रमा की रोशनी के नीचे रखने के बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि इस रात चंद्रमा के प्रकाश में अद्वितीय शक्ति होती है और उस प्रकाश से खीर भी समृद्ध हो जाती है, जिसे खाने से स्वास्थ्य और शुभता आती है।

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शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा और लक्ष्मी देवी की पूजा का दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार, इस दिन मां लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति हुई थी जिससे इसे धन-दायक तिथि माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और श्रद्धालुओं का मानना है कि जो लोग इस रात जागकर उनका पूजन करते हैं, मां लक्ष्मी उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं और उन्हें धन-वैभव प्रदान करती हैं। इसीलिए लोग रात भर जागकर मां लक्ष्मी के स्वागत में श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करते हैं।

इस विशेष अवसर पर लोग रात में चंद्रमा की पूजा करते हैं, खीर का भोग अर्पित करते हैं और सामूहिक रूप से अपने परिवार और दोस्तों के साथ इस दिन का आनंद लेते हैं। शरद पूर्णिमा न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र होती है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं में पूर्ण होता है। वैदिक साहित्य के अनुसार, चंद्रमा को शीतलता और शांति का प्रतीक माना जाता है। उसकी किरणों में विशेष रूप से इस दिन अमृतमयी ऊर्जा होती है।

क्यों कहते हैं कोजागिरी पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा कहा जाने का मुख्य कारण इसके सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व से जुड़ा हुआ है। “कोजागिरी” संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है – “को” (कौन) और “जागृति” (जागने वाला)। इस पर्व पर लोग रात में जागते हैं और लक्ष्मी माता का स्वागत करते हैं, इसीलिए इसे जागने वाला पर्व यानी कोजागिरी कहा जाता है। इस रात, देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, और जो लोग इस रात जागते हैं और उनकी पूजा करते हैं, उन्हें समृद्धि और भाग्य की प्राप्ति होती है। ख़ासतौर पर महाराष्ट्र में कोजागिरी पूर्णिमा का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लोग रात भर जागकर एक-दूसरे के साथ कथाएँ सुनते हैं, नृत्य करते हैं और उत्सव मनाते हैं। इस प्रकार, शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा कहना इस दिन की जागरूकता, देवी लक्ष्मी की पूजा और चाँद की विशेषता को दर्शाता है।

चाँद के नीचे खीर रखने की परंपरा

शरद पूर्णिमा की रात को खीर को चाँद के प्रकाश में रखने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं। जब खीर को इन किरणों में रखा जाता है, तो यह अमृत तुल्य बन जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है। अगले दिन इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है। इसे आयुर्वेद के अनुसार देखें तो शरद ऋतु में शरीर की पित्त प्रवृत्ति अधिक होती है। इस मौसम में ठंडे और दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन शरीर के संतुलन के लिए लाभकारी होता है। खीर, विशेषकर जब चंद्रमा की किरणों में रखी जाती है, शरीर में शीतलता और ताजगी प्रदान करती है।

शरद पूर्णिमा से जुड़ी प्रमुख कथाएं

  • चंद्रमा और देवी लक्ष्मी की कथा: शरद पूर्णिमा से कई पौराणिक और धार्मिक कथाएं जुड़ी हुई। एक कथा के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं में परिपूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है। देवी लक्ष्मी इस रात को जागरण करने वाले भक्तों को धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं।
  • राजा कोजागर और देवी लक्ष्मी की कथा: एक और प्रसिद्ध कथा में कहा गया है कि प्राचीन काल में एक राजा था जो आर्थिक संकट में था। उसे एक ऋषि ने शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी का जागरण करने का सुझाव दिया। राजा ने ऐसा किया, और देवी लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर उसकी आर्थिक स्थिति सुधार दी।

आध्यात्मिक महत्व

शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की पूजा, खीर रखने की परंपरा और देवी लक्ष्मी का पूजन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी यह परंपरा स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है। शरद पूर्णिमा का दिन अध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसे ध्यान और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए उपयुक्त समय माना जाता है। इस रात को प्रकृति की शांति और चंद्रमा की शीतलता ध्यान और साधना के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करती है।

 


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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