लेखक, अनु शर्मा अनुभूति। दक्ष प्रजापति की तीसरी कन्या दिति ऋषि कश्यप की पत्नी थीं, जिन्होंने 2 कन्याएं “पुलोमा और कालिका” को जन्म दिया। पुलोमा और कालिका से इंसानी पीढ़ी की 2 नई शाखाएं पोलोम और कालिकेय की शुरुआत हुई । पुलोम और कालिकेय अपने अपने इलाकों पर शासन करते थे और लोगों का भरण पोषण करते थे। कालिकेयों का राज्य कश्यप सागर के तट पर हुआ करता था। कहते हैं एक समय जब कश्यप सागर के तट पर बसे कालिकेयों के राज्य पर राजा बलि के पुत्र वाण ने आदिग्रह कर लिया उसके बाद कालिकेयों ने राजा वाण की अधीनता स्वीकार कर ली। चूंकि कालिकेय राजा उस समय वृद्ध और शक्ति हीन हो चुका था उसने अधीनता स्वीकारने के बाद भी चुपके से वही से भागने की योजना बनाई और एक दिन वहां से भागकर लंका के आसपास के द्वीपों पर अधिकार कर लिया। कालिकेयों के समूह में विद्युतज्जिह नामक एक युवक हुआ करता था जो न केवल कालिकेयों का सरदार था बल्कि कहते हैं रावण की इकलौती बहन सूर्पनखा से प्रेम करता था और छद्म वेष में उससे मिलने आता था।
सूर्पनखा घने घने लंबे बालों वाली , चमकती हुई आंखों वाली ,पिघलते सोने से रंग की, राजकुमारी की गरिमा से युक्त और अभिमान पूर्ण आकर्षण वाली युवती थी। वह तीन भाइयों की इकलौती लाडली बहन थी। उसका असली नाम वज्रमणि था परंतु सूप के आकार के लंबे और चौडे नाखून होने के कारण उसे प्यार से सूर्पनखा कहते थे। वह एक स्वतंत्र प्रवृत्ति की स्त्री थी ।
विद्युतज्जिह एक विलक्षण व्यक्तित्व का स्वामी था, उसका सौतेला पिता सुकेतु राक्षस रावण का परिजन था व उसकी सेना में सेनापति रहा था। उसकी माता विज्जला मंदोदरी की मौसेरी बहन थी वह परम सुंदरी थी। कहते हैं विज्जला ने सुकेतु (राक्षस) से विवाह करने के लिए अपने पहले पति (विद्युतज्जिह के पिता) मुचकुंद दानव का वध कर दिया था। इससे क्रोधित हो एक समय उपरांत विद्युतज्जिह ने मौका पाकर अपनी माता व सौतेले पिता का वध कर दिया।
जिस समय सूर्पनखा ने विद्युतज्जिह के साथ अपनी शादी की बात घर में कहीं तो वहां भूचाल सा आ गया। रावण और उसके परिजन कालिकेयों के यहां शादी करने को तैयार नहीं थे, कारण एक तो राक्षस कालिकेयों को अपने से तुच्छ समझते थे और वे उनके बैरी भी थे। इसी समय विद्युतज्जिह ने अपने माता पिता को मार डाला था और एक मातृहंता के साथ वह अपनी बहन का विवाह नहीं करना चाहते थे। वैसे भी दैत्यों–दानवों–राक्षसों में उस समय मातृसत्तात्मक परिवार थे।
बहुत बहस बाजी के बाद मंदोदरी ने रावण से कहा कि वह विद्युतज्जिह से एक बार मिलकर बात कर ले। परंतु रावण ने कहा मिलना तो दूर की बात है मैं उसे अपने मणि महालय की ड्योढ़ी भी नहीं लाधंने दूंगा । इस पर शूर्पणखा बोली की मैं भी नहीं चाहती कि वह अपमानित होने के लिए यहां आए। मै वीर भाई की बहन हूं मैं भी एक साहसिक प्रेमिका हूं अतः मैं तुम सबको छोड़कर अपने प्रेमी के पास जा रही हूं । जाते समय मंदोदरी ने उससे मणि महालय से दहेज के रूप में जो वह ले जाना चाहती हो वह ले जाने के लिए कहा । पर सूर्पनखा ने कहा कि जब तक रक्षेन्द्र उसे बहनोई के रूप में स्वीकार कर सम्मान के साथ नहीं बुलाएंगे तब तक वहां की किसी भी चीज को नहीं लेगी । रावण बोला मैं उससे कभी संबंधी स्वीकार नहीं करूंगा और अपनी कुल प्रतिष्ठा के लिए मुझे उससे युद्ध करना पड़ेगा। सूर्पनखा ने कहा भाई हम अश्मपुरी में तेरा स्वागत करेंगे।
अश्मपुरी के चारों ओर का समुद्र बड़ा गहरा था। उसमें भयानक जल दस्युओं जिनमें से कस्तूरी के समान सुगंध आती थी की भरमार थी। इस द्वीप पर भयंकर वनमानुष भी रहते थे। कालिकेय बहुत अधिक संपन्न नहीं थे उनका मुख्य धंधा कृषि व आखेट था। पुरी में नव दंपत्ति का भव्य स्वागत हुआ। विवाह व पितृहंता को मार देने से कालिकेय बहुत खुश थे। सूर्पनखा आश्चर्य में पड़ गई उसके इस वैभव और सामर्थ्य का उसे अनुमान भी नहीं था। वह तो उसे एक विपदा का मारा हुआ वीर पुरुष ही समझती थी। और केवल उसी के व्यक्तिगत साहस और बल पर वह रावण को चुनौती दे आई थी। यहां कर उसे पता चला कि उसका पति कालिकेयों का अधिपति और अश्मपुरी का स्वामी है।
मधु यामिनी चल ही रही थी सूरज अभी उदित नहीं हुआ था कि संकटकाल आ गया । रावण के 1600 युद्ध पोतों ने अश्मद्वीप को घेर लिया । आते ही विद्युतज्जिह युद्ध के लिए साज सजने लगा और युद्ध सज्जा से सज्जित वह सूर्पनखा से मिलने गया। वहां सूर्पनखा भी अपनी सखियों के संग युद्ध के लिए तैयार हो रही थी।पूछने पर सूर्पनखा ने कहा की भाई के स्वागत की तैयारी मुझे ही करनी है, मैंने ही उसे अश्मपुरी आने का निमंत्रण दिया है। तब उसको और उसकी सखियों को कुल पुरुषों के भरोसे छोड़कर और नगर की रक्षा का भार देकर विद्युतज्जिह ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया । सूर्पनखा ने उसे “समुद्र के दैत्य तेरी रक्षा करें” यह कहकर विदा किया ।
दोनों ओर से रणभेरियां बजने लगीं, शस्त्र चमचमाने लगे ,वाणों से दिशाएं व्याप्त हो गई । विद्युतज्जिह ने कुंभकरण से कहा की वह रावण से युद्ध करना चाहता है, दोनों महान योद्धाओं में बहुत देर तक युद्ध चलता रहा । शक्ति, शूल , खड्ग और मुद्गर से युद्ध होता रहा फिर वाणों से युद्ध होने लगा दोनों योद्धाओं के शरीर से झर झर कर रक्त बह रहा था अंत में विद्युतज्जिह के मारे जाने पर युद्ध बंद हुआ । विधुतज्जिह के मृत शरीर को कालिकेय लेकर चले गए जिसके बाद रावण व कुंभकरण भी निरस्त्र मंत्रियों सहित अपनी अपनी बहन के पास अश्मपुरी पहुंचे।
घर के बाहर चिता रची थी उसी समय सूर्पनखा श्रृंगार कर सती होने के लिए आई । रावण को देख उसके पास आ बोली भाई अश्मपुरी मैं तेरा स्वागत है , कल्याण हो । रावण की आंखों में आंसू भर आए उसने कहा मैं तुझे लंका ले जाने के लिए आया हूं । सूर्पनखा ने कहा तूने अपनी कुल की मर्यादा रखी मैं अपनी स्त्री मर्यादा रखने के लिए अज्ञात लोक को जा रही हूं । परंतु रावण और कुंभकरण ने मोह दिखाकर स्नेहवश उसे चिता रोहण न करने के लिए विवश कर दिया । रावण ने उसे दंडकारण्य राज्य देकर उसके अधीन काम करने को कहा । कालिकेओं को भी राक्षस धर्म स्वीकार करा सूर्पनखा के साथ दंडकारण्य भेज दिया।
अगर रावण उस समय बहन के मोह में ना पडकर उसे सती हो जाने देता तो शायद सीता हरण ना होता और ना राम रावण युद्ध होता । क्योंकि सूर्पनखा ने अपने पति की मौत से आहत हो मन ही मन रावण से बदला लेने का प्रण कर लिया था । इस तरह सूर्पनखा ही रावण की मौत का कारण बनी ।