Cultural Significance of Dussehra : शनिवार को दशहरा मनाया जाएगा। दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहा जाता है, भारत में एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो असत्य पर सत्य की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार रामायण और देवी दुर्गा की महाकाव्य गाथाओं से जुड़ा हुआ है, जो इसे विशेष महत्व देता है। दशहरा, भगवान राम की रावण पर जीत का प्रतीक है, जो असत्य और अहंकार का प्रतीक है। दशहरा हमें नैतिकता और मूल्यों की ओर प्रेरित करता है। भगवान राम का जीवन आदर्शों, सत्य और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। वहीं, इसे देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में भी मनाया जाता है।
दशहरा एक ऐसा त्योहार है जो हमें सिखाता है कि बुराई का अंत निश्चित है और अच्छाई की हमेशा जीत होती है। यह हमें हमारे भीतर और समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म करने और एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और नैतिक समाज की स्थापना की प्रेरणा देता है। इस दिन हमें अपने जीवन में सत्य, धर्म और नैतिकता को महत्व देने की सीख मिलती है। दशहरा आत्मनिरीक्षण और आत्म-सुधार का पर्व भी है। यह हमें आंतरिक बुराइयों से लड़ने और आत्मशुद्धि के लिए प्रेरित करता है। भगवान राम और देवी दुर्गा की विजय से यह सीख मिलती है कि जीवन में सत्कर्म, आत्मानुशासन और आध्यात्मिकता का महत्व क्या है।
दशहरे पर अलग अलग राज्यों की परंपराएं
दशहरा या विजयादशमी पूरे भारत में भिन्न-भिन्न परंपराओं और प्रथाओं के साथ मनाई जाती है। दशहरा भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर को संरक्षित करने का माध्यम भी है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसे भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है, जो भारत की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। रामलीला, दुर्गा पूजा, रावण दहन जैसी परंपराएं लोक संस्कृति का हिस्सा हैं और उन्हें जीवंत बनाती हैं। आज हम आपको भारत के प्रमुख राज्यों में दशहरे से जुड़ी कुछ लोक परंपराओं के बारे में बताने जा रहे हैं।:
1. उत्तर भारत
- रामलीला: उत्तर भारत के कई हिस्सों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मध्य प्रदेश में, दशहरे का मुख्य आकर्षण रामलीला होती है। यह धार्मिक नाटक रामायण के मुख्य पात्रों की कहानी को नाट्य रूप में प्रस्तुत करता है, जो राम और रावण के बीच युद्ध के साथ समापन होता है। दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है।
- कुम्भ मेले का हिस्सा: हरिद्वार और प्रयागराज जैसे पवित्र स्थलों पर दशहरे के अवसर पर बड़ी संख्या में लोग गंगा में स्नान करते हैं, जिससे यह दिन धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनता है।
2. पश्चिम बंगाल
- दुर्गा पूजा का समापन: पश्चिम बंगाल में दशहरे को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें देवी दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा की जाती है। दसवें दिन, जिसे विजयादशमी कहा जाता है, देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। इसे शक्ति की विजय के रूप में देखा जाता है, जब देवी दुर्गा महिषासुर का वध करती हैं।
- सिंदूर खेला: इस दिन विवाहित महिलाएं दुर्गा माता को विदाई देते समय एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मंगलकामनाएं करती हैं।
3. महाराष्ट्र
- सोने के पत्तों का आदान–प्रदान: महाराष्ट्र में दशहरे के दिन लोग अपट पेड़ की पत्तियों को “सोना” मानते हैं और इन्हें एक-दूसरे को भेंट करते हैं। इसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, परिवार और मित्रों के साथ विशेष भोज का आयोजन भी किया जाता है।
- सार्वजनिक पूजा और जुलूस: गणेशोत्सव की तरह ही, महाराष्ट्र में दशहरे के दिन विभिन्न प्रकार के जुलूस और पूजा आयोजित की जाती हैं।
4. कर्नाटक
- मैसूर दशहरा: कर्नाटक का मैसूर दशहरा विश्वप्रसिद्ध है। इस अवसर पर मैसूर के राजमहल को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है और पूरे शहर में जुलूस निकाले जाते हैं। इस जुलूस का मुख्य आकर्षण हाथियों पर सजे-धजे महाराजा की सवारी होती है। मैसूर दशहरे की जड़ें विजयनगर साम्राज्य से जुड़ी हैं, जहां यह शक्ति पूजा के रूप में शुरू हुआ था।
5. गुजरात
- नवरात्रि गरबा और डांडिया: गुजरात में दशहरे का समापन नवरात्रि के नौ दिनों की गरबा और डांडिया रातों के बाद होता है। लोग परंपरागत पोशाक पहनकर गरबा और डांडिया नृत्य करते हैं, जो देवी दुर्गा को समर्पित होते हैं। दशहरे के दिन दुर्गा की पूजा का समापन होता है, और इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
6. हिमाचल प्रदेश
- कुल्लू दशहरा: कुल्लू का दशहरा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और इसे एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस अवसर पर देवी-देवताओं की मूर्तियों को कुल्लू घाटी में लाकर एक विशाल जुलूस निकाला जाता है। यहां के दशहरे की खास बात यह है कि इसे रावण दहन के बिना मनाया जाता है और राम के राज्याभिषेक पर अधिक जोर दिया जाता है।
7. तमिलनाडु
- बोम्मई गोलू: तमिलनाडु में दशहरे के दौरान बोम्मई गोलू नामक परंपरा होती है, जिसमें घरों में खिलौनों और मूर्तियों की सीढ़ीदार सजावट की जाती है। इसे नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से महिलाएं सजाती हैं और सामाजिक समारोह आयोजित किए जाते हैं। विजयादशमी के दिन विशेष पूजा और भजन कार्यक्रम होते हैं।
8. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
- शमी पूजा: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। इसे “जमीन की पूजा” भी कहा जाता है क्योंकि इसे युद्ध और संघर्ष के समय विजय के लिए शुभ माना जाता है। लोग शमी के पेड़ की पत्तियां एक-दूसरे को भेंट करते हैं और इसे अच्छा शगुन माना जाता है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)