Wednesday Special: प्रदोष व्रत, भगवान शिव के अनन्य भक्तों के लिए वर्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। प्रदोष काल, जिसे संध्या का समय माना जाता है, भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने वाले भक्तों पर भोलेनाथ की विशेष कृपा बरसती है। माना जाता है कि प्रदोष व्रत रखने से रोग-दोष दूर होते हैं, मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। आइए, इस पवित्र व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं, जिसमें हम आषाढ़ मास के प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि पर गौर करेंगे।
बुध प्रदोष व्रत मुहूर्त
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ने वाला प्रदोष व्रत, 3 जुलाई 2024 को बुध प्रदोष व्रत के रूप में मनाया जाएगा। इस शुभ दिन का प्रदोष काल शाम 6:13 बजे से 8:42 बजे तक रहेगा। इस दौरान विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और मनोवांछित फल मिलते हैं।
बुध प्रदोष व्रत का महत्व
इस व्रत को रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पापों का नाश होता है। ग्रहों के दोष दूर होते हैं। वैवाहिक जीवन में सुख प्राप्त होता है। आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
बुध प्रदोष व्रत की पूजा विधि
1. सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
2. अपने पूजा स्थान को साफ करें और गंगाजल से धो लें। एक चौकी स्थापित करें और उस पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर रखें। दीपक, धूप, फल, फूल, बेल पत्र, भोग आदि अर्पित करें।3. शाम को प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करें। शिव मंत्रों का जाप करें और भगवान शिव को अर्घ्य दें। आरती गाएं और भोग लगाएं।
4. रात में जागकर भगवान शिव की भक्ति करें। शिव चालीसा, शिव स्तुति, लिंगाष्टक स्तोत्र आदि का पाठ करें।
5. अगले दिन, सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें। फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
शिव जी की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)