भगवान धनवंतरी, धन तेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस में क्या है बड़ी समानताएं, एक क्लिक में जानिए यहां

Atul Saxena
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Dhan Teras, Dhan Teras 2023

Dhanteras 2023 : धन तेरस को सुनकर सामान्य तौर पर ऐसा भाव आता है जैसे ये धन के देवता से जुड़ा दिन है और इस दिन उनकी पूजा की जाती होगी लेकिन इस दिन धन के देवता कुबेर की नहीं उस धन के देवता की पूजा की जाती है जिसे सबसे बड़ा धन माना गया है और ये धन है हमारा स्वास्थ्य, कहा भी गया है कि पहला सुख निरोगी काया, इसलिए धन तेरस का दिन आरोग्य के देवता भगवान धनवंतरी का दिन है, मान्यता के अनुसार कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन के समय भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस तिथि को धन तेरस अथवा धन त्रयोदशी कहा जाता है, खबर में आगे हम बताएँगे धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के बीच का कनेक्शन…

समुद्र मंथन के दौरान आज ही के दिन अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे भगवान धनवंतरी 

समुद्र मंथन हिन्दू धर्म को मानने वाली के लिए एक ऐसी पौराणिक कथा है जिसपर वे विश्वास करते हैं , मान्यता है जब देवताओं और राक्षसों के बीच वर्चस्व के लिए समुद्र मंथन हुआ तो उसमें बहुत से वस्तुएं निकली और इसी दौरान भगवान धनवंतरी अपने हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, उन्होंने ये कलश देवताओं को प्रदान कर उन्हें जीवन भर स्वास्थ्य का आशीर्वाद दिया, धनवंतरी की कृपा से मनुष्य स्वस्थ रहता है और उसके धन में भी वृद्धि होती है इसलिए इस दिन को धन तेरस या धन त्रयोदशी के रूप में मनाया जाता है।

बर्तन या वस्तु खरीदने की प्रथा के पीछे छिपी हैं ये मान्यताएं 

धन तेरस से ही पांच दिवसीय दीपावली उत्सव की शुरू हो जाता है, इस दिन बर्तन खरीदने की भी परंपरा है इसका कारण ये माना जाता है कि चूँकि भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के दौरान हाथ में कलश (बर्तन) लेकर प्रकट हुए थे तो इस दिन बर्तन खरीदना शुभ होता है, मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु में तेरह गुना वृद्धि होती है, कुछ लोग धनतेरस पर सोने चांदी के आभूषण,  चांदी, पीतल, कांसे, स्टील आदि के बर्तन भी खरीदते है, इस दिन धनिया खरीदने की भी प्रथा है  जिसे वे बाद में अपने बगीचे या खेत में बो देते हैं।

धनतेरस से जुड़ी एक ये मान्यता भी है 

एक अन्य मान्यता के अनुसार  इस दिन घर के दरवाजे की दक्षिण दिशा अथवा घर के आँगन में यम के नाम का दीपक जलाया जाता है और ऐसा करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है, इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार हेम नाम के राजा के एक पुत्र पैदा हुआ लेकिन ज्योतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। संयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया लेकिन चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई, यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने पहुँच गए। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज, क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के प्रश्न पर यम देवता ने कहा कि अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।

आज ही मनाया जाता है राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस  

भगवान धनवंतरी को देवताओं का चिकित्सक भी कहा जाता है इसलिए इन्हें चिकित्सा का देवता माना जाता है, भारत की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को मानने वालों के लिए ये दिन बहुत शुभ होता है, इसलिए भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया है नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में ये घोषणा की थी और पहला राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 28 अक्टूबर 2016 को मनाया गया था, इस दिन आयुर्वेद कॉलेज, आयुर्वेद संस्थानों में धनवंतरी का पूजन किया जाता है और कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी इस दिन कार्यक्रम आयोजित करता है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई सभी जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है और अलग अलग जगह से ली गई है, इसे अपनाने से पहले विशेषज्ञ की राय अवश्य लें


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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