Chhath Puja 2024: छठ महापर्व भारत के सबसे महत्वपूर्ण और धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच यह त्यौहार बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व खास तौर पर सूर्य देवता और उर्वरा के सम्मान में मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं उपवासी रहकर विशेष पूजा अर्चना करती हैं।
इस दिन महिलाओं को नाक तक सिंदूर लगाते देखा जाता है और यह परंपरा एक बार धार्मिक महत्व रखती है लेकिन शायद आप सोच रहे होंगे कि आखिर छठ पूजा के दौरान महिलाएं ऐसा क्यों करती है। आखिर छठ पूजा के दौरान महिलाओं द्वारा नाक तक सिंदूर लगाने की परंपरा का क्या महत्व है? तो चलिए इस आर्टिकल में विस्तार से समझते हैं।
छठ पर्व (Chhath Puja 2024)
छठ पर्व के दौरान महिलाएं नदियों या जलाशय में उतरकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती है, जो स्वास्थ्य समृद्धि और सुख शांति की कामना का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम और माता सीता वनवास से वापस लौटे थे। तब अयोध्या वासियों ने सूर्य देवता की उपासना के लिए व्रत रखा था और उसी दिन से छठ पूजा की परंपरा की शुरुआत हुई। इस पर्व का उद्देश्य सूर्य देव से जीवन में उजाला, सुख और समृद्धि प्राप्त करना है।
सर से लेकर नाक तक सिंदूर लगाने का महत्त्व
छठ पर्व के दौरान महिलाएं अपने सर से लेकर नाक तक सिंदूर लगाते हैं जो केवल एक परंपरा नहीं बल्कि एक गहरी धार्मिक मान्यता से जुड़ी हुई है। सिंदूर की यह लंबी रेखा सूर्य की लालिमा का प्रतीक मानी जाती है जो जीवन में उजाला और समृद्धि लेकर आती है।
इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि सिंदूर की यह रेखा पति की लंबी उम्र का प्रतीक है। साथ ही इसे छठ माता की कृपा प्राप्त करने का एक तरीका भी माना जाता है जो महिलाओं और उनके परिवार को सुख समृद्धि और आशीर्वाद प्रदान करती है। यह सिंदूर लगाना न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि एक संकल्प भी है जो परिवार की खुशहाली की कामना करता है।
नारंगी सिंदूर लगाने की परंपरा
छठ पर्व पर नारंगी सिंदूर लगाने की परंपरा का विशेष महत्व है। सामान्य तौर पर महिलाएं अपनी मांग में लाल रंग का सिंदूर भरती है लेकिन छठ पर्व पर बिहार और झारखंड की महिलाएं सिर से नाक तक नारंगी रंग का सिंदूर लगाती हैं। यह विशेष रंग सुविधा का प्रतीक माना जाता है और इसकी एक धार्मिक मान्यता भी है। सिंदूर का संबंध भगवान हनुमान से है, जिन्हें यह चढ़ाया जाता है।
भगवान हनुमान ब्रह्मचारी थे और इस प्रकार नारंगी सिंदूर का उपयोग विवाह के बाद दुल्हन के ब्रह्मचारी व्रत के समाप्त होने और गृहस्थ जीवन की शुरुआत का संकेत होता है। यह परंपरा न केवल बिहार और झारखंड में बल्कि अन्य स्थानों पर भी प्रचलित है।