इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि 60 वर्ष से अधिक की सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाली सीनियर बेसिक स्कूल की प्रधानाध्यापिका ग्रेच्युटी की हकदार नहीं हैं। कोर्ट ने बेटे द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मां की बकाया ग्रेच्युटी की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने इस मामले में कहा कि शासनादेश के अनुसार 60 वर्ष में सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापक ही ग्रेच्युटी के हकदार होते हैं।
याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की मां ने 60 वर्ष की आयु में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति की मांग की थी, जिसे 31 मार्च 2019 को स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता की मां का निधन 23 अप्रैल 2019 को हुआ। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसके पिता को ग्रेच्युटी और फेमिली पेंशन के अलावा सभी देयों का भुगतान कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने मां की बकाया ग्रेच्युटी की मांग में याचिका दाखिल की थी।
कोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारी एटा को चार हफ्ते में निर्णय लेने का आदेश दिया था। बीएसए ने शासनादेश का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। बीएसए के अधिवक्ता बीपी सिंह कछवाह ने कहा कि याचिकाकर्ता की मां की सेवा नियत अर्हता के अधीन नहीं थी, इसलिए वह ग्रेच्युटी पाने की हकदार नहीं हैं।
60 वर्ष में सेवानिवृत्त होने का नियम क्या है?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 60 वर्ष में सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापक ही ग्रेच्युटी के लिए योग्य होते हैं। याचिकाकर्ता की मां ने 60 वर्ष की आयु में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी, लेकिन उसने शिक्षा सत्र का लाभ भी लिया। इस कारण उसे ग्रेच्युटी का हक नहीं मिला।
याचिका में क्या कहा गया था?
याचिका में यह बताया गया था कि याचिकाकर्ता की मां की बकाया ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया था। याचिकाकर्ता ने बीएसए एटा द्वारा मां की ग्रेच्युटी भुगतान करने से इन्कार करने के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु के बाद ही याचिका दाखिल की गई थी। कोर्ट के निर्णय के बाद याचिकाकर्ता को अब ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं मिलेगा। बीएसए एटा ने पहले ही याचिका को खारिज कर दिया है, और यह निर्णय शासनादेश के अनुसार लिया गया है। इस मामले में आगे कोई नया विकास नहीं हुआ है।





