भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। क्या आपको वो जमाना याद है जब अधिकांश टीवी ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करते थे। करीब 30-35 साल पहले, जब टीवी में बाकायदा शटर हुआ करते थे और उसपर अलग से एक ब्लू स्क्रीन लगाई जाती थी। ये व्हाइट बैलेंस का तरीका था। बाद में उस ब्लू स्क्रीन की जगह कुछ रंगीन स्क्रीन भी आने लगी..जिनपर एक साथ दो तीन कलर हुआ करते थे। कई लोग अपने टीवी पर वो कलर स्क्रीन लगाते थे और ब्लैक एंड व्हाइट टीवी में कलर टीवी का मजा लेते थे।
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हम सबने जब बचपन में पहली बार कलर टीवी में प्रोग्राम, गाने और विज्ञापन देखे तो उसे कंपेयर करते थे कि काले सफेद दिखने वाली चीजें असल में कितनी रंगीन हैं। ऐसा सिर्फ टीवी के साथ ही नहीं हुआ, कई फिल्मों भी जो मूल रूप से ब्लैक एंड व्हाइट थी उन्हें बाद में कलर किया गया। इनमें मुग़ल-ए-आज़म का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है जिसे साल 2004 में रंगीन करके प्रस्तुत किया गया था। इसे रंगीन करने में करीब 5 करोड़ का खर्च आया था। हालांकि ये बहुत कठिन प्रक्रिया है। चलती पिक्चर में एक सेकंड में 24 फ्रेम होते हैं, यानी एक पल में हमारी आंखों के सामने से 24 फ्रेम गुजर जाते हैं। इसे फ्रेम दर फ्रेम कलर करना एक मुश्किल और महंगी प्रोसेस है।