Video : आज से 30 साल पहले ऐसा होता था hands free टेलीफोन का विज्ञापन

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। पिछले 15-20 सालों में तकनीक ने जिस तेजी से तरक्की की है..उससे सारी दुनिया का स्वरूप बदल चुका है। आज हम हजारों किलोमीटर दूर बैठे शख्स से महज एक मैसेज की दूरी पर है। सारा बाजार हमारे फोन में समा गया है और इंटरनेट क्रांति ने जीवन को बदलकर रख दिया है। लेकिन अगर हम सिर्फ 30 साल पहले के समय को पलटकर देखते हैं तो समझ आता है कि उस समय दुनिया कितनी अलग थी।

साइकिल बनाम ट्रेडमिल, आप चलेंगे तो साइकिल चलेगी

आज से करीब 25-30 साल पहले के टेलीफोन की बात करें तो हम सबके ज़हन में वो क्लासिक ब्लैक फोन की छवि घूम जाएगी। उस समय उसकी आवाज किसी मधुर संगीत से कम नहीं लगती थी। धीरे धीरे फोन थोड़े मॉडर्न होने लगे। बात में डॉयल करने की बजाय बटन दबाने वाले फोन आए। उनके रंग में भी बदलाव हुआ। इस बीच एक समय पेजर का भी आया था। पेजर में सिर्फ मैसेज भेजे जा सकते थे।

जब कॉर्डलेस टेलीफोन नहीं आया तब उसके कई अलग तरह के विकल्प आए थे। आज हम आपको एक ऐसा ही विज्ञापन दिखाने जा रहे हैं। आज ये हमें मजेदार लग सकता है लेकिन उस दौर में ये एक क्रांतिकारी इजाद माना जाता रहा होगा। ये विज्ञापन है जो 1993 का है। इसे slice of history ट्विटर हैंडल से शेयर किया गया है। इसमें हमें कुछ लोग नजर आ रहे हैं जो वायर वाले टेलीफोन से जूझते दिख रहे हैं। फिर आता है इसका सॉल्यूशन..जो आज के हैडफोन की तरह है। कॉर्ड वाले फोन को हैंड्स फ्री (hands free telephone) बनाने के लिए फोन के रिसीवर पर एक टेप चिपका दिया जाता है और उसपर वो हैडफोन भी चिपक जाता है। अब फोन को पकड़े रहने की झंझट खत्म। ये हैंड्सफ्री काफी इंटरस्टिंग है और इसे दिखाया भी बहुत अच्छे तरीके से हैं। यकीनन उस समय के लिहाज से ये एक बड़ी राहत रही होगी। बहरहाल, हम आपको फिर बता दें कि ये 29 साल पुराना विज्ञापन है, इसलिए इसमें दिए गए टोल फ्री नंबर पर संपर्क करने की कोशिश न करें।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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