दमोह, गणेश अग्रवाल। दमोह जिले में लगातार दुसरे दिन एक और किसान ( farmer) ने मौत को गले लगा लिया । अचरज की बात ये है की फांसी के फंदे पर झूलने वाला ये दूसरा किसान ( farmer) भी उसी गावों का है जहाँ कल एक किसान ने फसल तबाही और कर्ज की वजह से ख़ुदकुशी (suicide) की थी।
जिले के तेंदूखेड़ा ब्लाक के बेलवाड़ा गावं में जंगल में किसान खिलान आदिवासी का शव पेड़ पर लटका मिला तो सनसनी ( sensation) फ़ैल गई। मृतक किसान 55 साल का है और परिजनों के मुताबिक़ उसकी पांच एकड़ में लगी गेहूं की फसल सिचाई न हो पाने की वजह से सूख रही है और वजह बिजली की आपूर्ति ना हो पाना है।
परिजनों का कहना है की खिलान के ऊपर एक लाख रूपये का साहूकारों का कर्ज है। किसान की ख़ुदकुशी के बाद गुस्साए लोगों ने दमोह जबलपुर स्टेट हाइवे पर जाम लगाने की कोशिश भी की पर वहां पुलिस ने हालातों पर काबू पा लिया।
पुलिस के मुताबिक़ खिलान की खुदकुशी ( suicide) में आर्थिक परेशानी और पारिवारिक परेशानी दोनों पहलु सामने आ रहे है, जिसकी जांच की जा रही है । वहीँ दो दिनों में एक ही गावं के दुसरे किसान की आत्महत्या का मामला सामने आने के बाद सनसनी फ़ैल गई है और एक बार फिर बिजली विभाग कटघरे में खड़ा है । कल इसी गावं के दलित किसान रूपलाल अहीरवाल ने आत्महत्या की थी ।और आज आदिवासी किसान खिलान ने मौत को गले लगाया है ।
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Gaurav Sharma
पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।
इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।