कोरोना कर्फ्यू के चलते मध्य प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की उपस्थिति 10% कर दी गई थी। हालांकि अधिकारियों को कहा गया था कि वे शत प्रतिशत उपस्थिति रखें। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि बड़ी संख्या में कर्मचारी कोरोना संक्रमित हो रहे थे। अकेले वल्लभ भवन की बात करें तो लगभग 200 से अधिक कर्मचारी कोरोना संक्रमित हुए जिनमें 7 की दुखद मृत्यु हो गई। पूरे मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा हजारों में था और मौत की अगर बात की जाए तो 500 के लगभग शिक्षक, 70 सहायक कृषि विस्तार अधिकारी सहित अनेक अन्य कर्मचारी अधिकारी काल कलवित गए। अब जैसे-जैसे कोरोना की लहर थम रही है, सरकार ने एक बार फिर निर्देश दिए हैं कि कर्मचारियों की 50 फीसदी उपस्थिति 1 जून से सरकारी कार्यालयों में की जाए।
इस बारे में मध्यप्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष उमाशंकर तिवारी का मानना है कि सरकार को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि ज्यादातर सरकारी कार्यालयों में सोशल डिस्टेंसिंग, विधिवत सेनेटाइजेशन, सफाई आदि की व्यवस्था नहीं है जो एक बार फिर कोरोना फैला सकती है। इन सारी व्यवस्थाओं को ठीक करके ही कोरोना से बचा जा सकता है। वहीं मध्य प्रदेश मंत्रालय संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का मानना है कि अधिकारियों या कर्मचारियों को इतनी बड़ी संख्या में अचानक उन्हें कार्यस्थल पर बुलाना एक बार फिर संकट भी न्योता देना जैसा है। उनका कहना है कि कर्मचारियों की एकदम से 50 फीसदी उपस्थिति के बजाय इसे धीरे धीरे बढ़ाया जाना चाहिए और कोशिश भी की जानी चाहिए कि जो काम work from home से हो सकते हैं, उन्हें घर से ही कराया जाए। हालात यह है कि अभी तक सभी अधिकारी-कर्मचारियों का वैक्सीनेशन भी नहीं हो पाया है। ऐसी स्थिति में यदि सरकार ने एहतियात नहीं बरती तो कोरोना एक बार फिर पैर पसार सकता है, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।