भोपाल। प्रदेश में एक बार फिर विधानसभा परिषद के गठन की अटकलें तेज हो गई हैं। जिसका भाजपा ने विरोध शुरू कर दिया है। भाजपा ने आरोप लगाए हैं कि कांग्रेस सरकार प्रदेश के विकास के लिए विधानपरिषद का गठन नहीं करना चाहती, बल्कि सरकार बचाने के लिए ऐसा कदम उठाने जा रही है। विधानसभा परिषद के जरिए कांग्रेस ऐसे नेताओं को भोपाल लाना चाहती है, जो आरक्षित क्षेत्र से आते हैं। प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 35 और जनजाति वर्ग 47 विधानसभा सीट आरिक्षत हैं। इन क्षेत्रों के सामान्य एवं पिछड़े वर्ग के नेताओं को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल पाता है। कांग्रेस इन्हीं वर्ग के नेताओं को विधानसभा परिषद के जरिए आगे बढ़ाने पर विचार कर रही है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विरोध करते हुए विधान परिषद् गठन नहीं होने देने की बात कही है|
इधर राज्य सरकार ने बैठक बुलाकर विधान परिषद के गठन की समीक्षा कर डाली। बैठक में सभी विभागाध्यक्षों को विधान परिषद के गठन की तैयारियों के निर्देश दिए। मुख्य सचिव ने सभी से कहा कि सभी राज्यों से जानकारी मंगाकर अपने-अपने विभागों से संबंधित जानकारी संसदीय कार्य विभाग को सौंपे। हालांकि पिछले 10 महीने से कांग्रेस चीख-चीख कर कह रही है कि प्रदेश की शिवराज सरकार मध्यप्रदेश का खजाना खाली करके गई है। इसके बाद भी कमलनाथ सरकार प्रदेश में विधान परिषद बनाने की कवायद कर रही है। जबकि विधान परिषद बनने के बाद मप्र में 77 विधायक बढ़ेंगे। इन पर सालाना 34 करोड़ रुपए खर्चा होगा।