उपचुनाव में बंपर जीत के बाद बीजेपी में क्या नरम पड़ रहे सिंधिया विरोधियों के स्वर?

Kashish Trivedi
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सिंधिया

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश की सियासत में जयभान सिंह पवैया (Jaibhan Singh Pawaiya) और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) एक दूसरे की चिर विरोधी माने जाते हैं। ऐसे में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव (By-election) में शानदार जीत के लिए जहां एक तरफ बीजेपी (bjp) द्वारा सिंधिया (scindia) के सर जीत का सेहरा माना जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ क्या जयभान सिंह पवैया भी इस सच को अब कुबूल करते नजर आ रहे हैं? इस मामले में अब पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया का बड़ा बयान सामने आया है।

दरअसल प्रदेश में बीजेपी की शानदार जीत पर जयभान सिंह पवैया ने मीडिया से चर्चा की। मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा भारतीय जनता पार्टी विचारधारा के लिए जाती है और इसी के ऊपर कार्य करती है। पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने कहा कि मध्य प्रदेश में बीजेपी कार्यकर्ताओं की शक्ति की बदौलत जीती है। वहीं शिवराज सिंह चौहान (shivraj singh chauhan) के चेहरे को बड़ा कारण मानते हुए पवैया (pawaiya) ने कहा कि उनके चेहरे पर प्रदेश में लोगों ने वोट देकर उन पर विश्वास जताया है।

दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर सवाल पूछे जाने पर पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने कहा छोटी-छोटी बातों के मुद्दे बना लिए जाते हैं। वहीं उन्होंने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक बीजेपी में शामिल हुए। निश्चित ही इसका परिणाम वोटों पर नजर आया है। जयभान सिंह पवैया ने कहा पार्टी में जब ताकत बढ़ती है तो वोट बैंक में भी इजाफा होता है। इस उपचुनाव में यह साबित हो गया कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कंगाल हो चुकी है।

पवैया और सिंधिया  

बता दें कि सियासत में पवैया और सिंधिया के बीच विरोध बहुत पुराना रहा है। साल 1998 में पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने ग्वालियर की सीट पर माधवराव सिंधिया (Madhavraj scindia) को चुनौती दी थी। जयभान सिंह पवैया ने लोकसभा के चुनाव में सामंतवाद बनाम देश प्रेमी का मुद्दा उठाया था और इसके साथ ही सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वहीं 1999 के मध्य अवधि लोकसभा चुनाव में पवैया ग्वालियर सीट से चुनाव जीत सांसद बने। वहीं माधवराव सिंधिया ने चुनाव के लिए गुना सीट का चयन किया था।

यह विरोध यही नहीं समाप्त हुआ। 2014 में जयभान सिंह पवैया ने एक बार फिर गुना लोकसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनौती दी। हालांकि इसमें पवैया को 1 लाख 20 हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में प्रद्युमन सिंह तोमर ने पवैया के खिलाफ प्रचार किया था। जिसके बाद सियासत में कहा जाता है कि प्रद्युमन और पवैया की भी एक सियासी नोकझोंक बनी रही।

पवैया और तोमर का राजनीतिक इतिहास

सिंधिया के सिपहसालार माने जाने वाले प्रद्युमन सिंह तोमर से भी पवैया की नोकझोक नई नहीं है। साल 2008 में ग्वालियर विधानसभा सीट से एक तरफ जहां बीजेपी के टिकट जयभान सिंह पवैया खड़े हुए थे। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने प्रद्युमन सिंह तोमर को मैदान में उतारा था। रोचक मुकाबले में प्रद्युमन ने पवैया को 2 हजार से अधिक वोटों से पटखनी दी थी।

जिसके बाद फिर 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर मैदान में उतरे और बीजेपी ने जयभान सिंह पवैया को टिकट देकर इस मुकाबले को रोचक बनाया। इस मुकाबले में जयभान सिंह पवैया 15,000 से अधिक वोटों से प्रदुमन को मात देने में सफल रहे थे जबकि 2018 विधानसभा चुनाव में पवैया और तोमर के बीच एक बार फिर से मुकाबला देखा गया। इस मुकाबले में तोमर ने पवैया को 21, 044 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी।

हालांकि सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद प्रद्युमन सिंह तोमर और जयभान सिंह पवैया को उपचुनाव के लिए साथ आना पड़ा। हालांकि अब जयभान सिंह पवैया ने यह माना है कि सिंधिया के आने से बीजेपी की ताकत बढ़ी है जिससे इस उपचुनाव में उन्हें फायदा मिला है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो रही है कि पार्टी में सिंधिया विरोधियों के स्वर धीरे-धीरे नरम पड़ते नजर आ रहे हैं।


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