नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। आर्थिक संकट से जूझ रहा श्रीलंका अब विरोध की आग में जल रहा है। देश में नफरत कितनी बढ़ चुकी है, आप इस बात से ही अंदाजा लगा सकते है कि सत्ताधारी पार्टी के एक सांसद को जान तक गंवानी पड़ी है। हिंसा के दौरान एक सांसद ने डरकर खुद को गोली मार ली थी। प्रदर्शनकारियों ने महिंदा राजपक्षे का घर भी फूंक डाला गया। अपनी जान बचाने के लिए उन्होंने नौसेना अड्डे में ली शरण ली हुई है।
श्रीलंका में सोमवार को जमकर उत्पात हुआ, सूत्रों के मुताबिक इस दौरान एक सांसद समेत 8 लोगों की मौत हो गई वहीं 150 से ज्यादा लोग जख्मी बताये जा रहे हैं। बता दे, राजपक्षे ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।
देश में बढ़ती हिंसा को देखते हुए प्रशासन ने फिर से कर्फ्यू लगा दिया है वहीं राजधानी कोलंबो में तो सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना को सौंप दी गई है।
श्रीलंकाई अधिकारियों ने मंगलवार को अशांति को शांत करने के लिए मौके पर गोली मारने (shoot at sight) के आदेश जारी किए।
रक्षा मंत्रालय की और से जारी बयान में कहा गया है, ” सैनिकों को “सार्वजनिक संपत्ति को लूटने या जीवन को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया है”।
इससे पहले सोमवार को, सरकार के समर्थकों ने लाठी-डंडो के साथ कोलंबो में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर हफ्तों से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया था।
श्रीलंका पर है 56 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज
श्रीलंका में फिलहाल खाने-पीने के सामान की भारी किल्लत है, इसके अलावा दवाओं की भी भारी कमी है। जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं और उसके ऊपर से 56 अरब डालर का विदेशी कर्ज, जिसे वह चुकाने में अभी नाकाम है। कर्ज में दस फीसद अकेले चीन का ही है।
दरअसल, श्रीलंकाई सरकार का सबसे बड़ा कमाई का जरिया ही पर्यटन (tourism sector) था। लेकिन महामारी के बाद से यह भी ठप्प पड़ा हुआ है। श्रीलंका को दो अरब डालर केवल इस कर्ज के ब्याज के रूप में चुकाने हैं।
उधर, श्रीलंका के पास मुश्किल से 50 अरब डालर का विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves) बचा हुआ है तो ऐसे में इस बात के कयास लगाए जा रहे है कि कहीं विभिन्न वित्तीय एजेंसियां श्रीलंका को जुलाई में डिफाल्टर घोषित ना कर दें।
चीन का समर्थक रहा है राजपक्षे परिवार
भारत इस वर्ष जनवरी से अब तक श्रीलंका को 3.5 अरब डॉलर की मदद दे चुका है। भारत ने ‘नेबर फर्स्ट नीति’ के तहत श्रीलंका को दवाइयों व अनाजों की भी मदद भेजी है। लेकिन श्रीलंका के हालात इतने खराब है कि यह सिर्फ अकेले भारत के बस की बात नहीं है। हालांकि, श्रीलंका के लिए विदेश से कर्ज पाना इसलिए भी मुश्किल हो रहा है क्योंकि वहां पर राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है।
बता दें कि श्रीलंका की राजपक्षे की सरकार चीन की समर्थक रही है। सरकार की इसी नीति ने आज देश को इस बदहाली की कगार पर पहुंचाया है।