हमीदिया अस्पताल की बड़ी लापरवाही, मृत बच्ची के माता पिता कोई और, टैग से हुआ खुलासा

Atul Saxena
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रायसेन, डेस्क रिपोर्ट। रायसेन में जिस मृत बच्ची के शव के साथ परिजनों ने रविवार को चक्काजाम (Chakka jam) किया था उसमें बड़ा खुलासा हुआ है।  हमीदिया अस्पताल (Hamidia Hospital) की एक और बड़ी लापरवाही सामने आई है।  परिजनों ने जब बच्ची के शव को ध्यान से देखा तो उसके हैण्ड टैग पर माता पिता का कुछ और नाम निकला। अब परिजन बच्ची के शव को लेकर वापस हमीदिया अस्पताल के गेट के बाहर बैठे हैं।

सागर भोपाल मार्ग पर बस स्टैंड के पास आज रविवार को एक परिवार ने अपनी नवजात बच्ची के शव (Dead Body Of Girl Child) के साथ चक्काजाम कर दिया। ये परिवार रायसेन के गैरतगंज का रहने वाला है। परिजनों ने आरोप लगाया कि जिस दिन हमीदिया अस्पताल भोपाल के परिसर में बने कमला नेहरू अस्पताल के बच्चा वार्ड में आग लगी थी हमारी बच्ची भी वहीँ भर्ती थी और आग में झुलस गई थी।  लेकिन डॉक्टरों ने हमसे ये बात छिपाई और जब कल रात बच्ची की सांसें थम गई तो उसे हमें सौंप दिया।  परिजनों ने दावा किया कि बच्ची के शरीर पर आग से झुलसने के निशान हैं।

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परिजनों ने हमीदिया अस्पताल प्रबंधन से सवाल किये तो उन्हें भगा दिया गया बाद में मजबूर  और आक्रोशित परिजन सड़क पर बैठक चक्काजाम करने लगे।  उसमें उन्हें कांग्रेस जिला अध्यक्ष देवेंद्र पटेल का भी साथ मिला।  पुलिस ने समझा बुझाकर परिजनों को शांत कराया और चक्काजाम ख़त्म करवाया।

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पुलिस और प्रशासन की बात मानकर परिजन घर लौट गए लेकिन उन्होंने जैसे ही बच्ची के शव को देखा तो वे चौंक गए क्योंकि बच्ची के हाथ में जो टैग लगा था उसपर माता पिता का नाम कुछ और था।  टैग पर पिता का नाम विक्रम और  पूजा लिखा था।  जबकि जो परिजन अपनी मृत बच्ची समझ कर चक्काजाम कर रहे थे उनका नाम नविन विश्वकर्मा और गायत्री है।

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हमीदिया अस्पताल की लापरवाही सामने आने के बाद परिजन परेशान हो गए उन्हें अब अपनी बच्ची की और चिंता सताने लगी कि आखिर उनकी बच्ची कहाँ है ? वे रात को ही वापस हमीदिया अस्पताल भोपाल चले गए और लिखे जाने तक शव के साथ अस्पताल के बाहर ही बैठे हैं लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं हैं।

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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