नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। अदालत (Court) ने एक बार Employees को बड़ी राहत है। दरअसल कर्मचारी द्वारा 7 साल में 150 से ज्यादा बार अदालत के चक्कर लगाए गए। जिसके बाद आखिरकार उसके हक में फैसला आया है। वहीं अदालत ने टीसीएस कंपनी (TCS Company) को कारण कर्मचारी को पुनः बहाल करने इसके अलावा उन्हें वेतन का भुगतान (salary payment) करने के निर्देश दिए हैं। जिसका लाभ कर्मचारियों को मिलेगा।
सात साल की लंबी अदालती लड़ाई आखिरकार चेन्नई के एक तकनीकी विशेषज्ञ थिरुमलाई सेल्वन के पक्ष में सुनवाई पूरी हो गई है, दरअसल याचिकाकर्ता को 2015 में आईटी प्रमुख टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज द्वारा बड़े पैमाने पर छंटनी में निकाल दिया गया था। शहर की एक अदालत ने सेलवन के पक्ष में फैसला सुनाया है। आदेश में कहा गया था कि कंपनी को उन्हें निरंतरता के साथ बहाल किया जाएगा।
इसके अलावा आदेश में कहा गया है कि सेवा समाप्त करने की तिथि से उसकी बहाली की तिथि तक अन्य सभी लाभों के साथ पूर्ण वेतन का भुगतान करें। चेन्नई की अदालत ने पाया कि सेलवन की प्राथमिक भूमिका एक कुशल कर्मचारी की थी। 48 वर्षीय सेलवन ने आईटी प्रमुख के लिए 8 वर्षों से अधिक समय तक काम किया था और टीसीएस द्वारा बर्खास्त किए जाने से पहले वह एक प्रबंधकीय पद पर थे, वहीँ TCS द्वारा यह कहते हुए कि उनका प्रदर्शन उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं था, उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था।
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डीटी नेक्स्ट अखबार ने प्रिंसिपल लेबर कोर्ट के पीठासीन अधिकारी सी कुमारप्पन के हवाले से कहा, “याचिकाकर्ता के अन्य कर्तव्यों का उल्लेख नहीं करने का कारण उसके मुख्य कर्तव्य को छिपाने के लिए एक छलावा है। दरअसल, टीसीएस ने अपने तर्क में कहा कि सेलवन एक प्रबंधकीय कैडर में काम कर रहे थे और ‘कार्यकर्ता’ की श्रेणी में नहीं आते थे।
2015 में अपनी समाप्ति के बाद, पूर्व टीसीएस कर्मचारी को सॉफ्टवेयर परियोजनाओं पर फ्रीलांस सलाहकार के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया था, साथ ही रियल एस्टेट ब्रोकरेज जैसी अन्य विषम नौकरियां भी ली गई थीं। टीसीएस में अपनी नौकरी गंवाने के बाद, सेलवन का मासिक वेतन घटकर 10,000 रुपये रह गया।
बता दें कि ग्रेजुएशन से मैकेनिकल इंजीनियर, सेलवन ने 2001 में सॉफ्टवेयर लेन में जाने से पहले चार साल तक अपने कोर सेक्टर में काम किया। वह 1 लाख रुपये की लागत का कोर्स पूरा करने के बाद 2006 में एक सहायक सिस्टम इंजीनियर के रूप में टीसीएस का हिस्सा बने थे।
वही अपनी जीत के बाद अपने संघर्षों को याद करते हैं वैसे उनका कहना है कि वह पिछले 7 सालों से डेढ़ सौ से ज्यादा बार अस्पताल के चक्कर लगा चुके हैं। वही उनके जीत पर उन्होंने कहा कि उन्हें अदालत पर भरोसा था और अपनी सच्चाई के दम पर उन्होंने इतने साल तक अपनी मांगे को लेकर थकना अनिवार्य नहीं समझा।