कटनी, अभिषेक दुबे। संसद में पास हुए कृषि बिल को लेकर देशभर में विरोध शुरु हो गया है। वही उपचुनाव से पहले बिल को लेकर एमपी में भी विरोध के स्वर तेजी से फूटने लगे है।कांग्रेस नेता और पूर्व जिलाध्यक्ष करण सिंह ने इसे किसान विरोध बताते हुए कहा है कि बिल से किसानों को उचित कीमत नहीं मिलेगी और किसान व्यापारियों का गुलाम बन जाएगा।
पूर्व जिलाध्यक्ष करण सिंह चौहान ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा प्रथम विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 पास किया गया है जिसमें कई विसंगतियां हैं उनहोंने बताया कि भारत में सूखे और अकाल जैसे हालात निपटने के लिए के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1955 में खाद्यान्न की काला बाजारी रोकने आवश्यक वस्तु अधिनियम संसद यह कानून लाया था, नए बिल में युद्ध,अकाल,के समय कीमतों में अप्रत्याशित उछल या गंभीर प्राकृतिक आपदा पर ही सरकार कदम उठायेगी, कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कब आवश्यक वस्तु अधिनियम लागू किया जाएगा इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
दूसरे कृषि विधेयक मे कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 है लाया गया है ,पूर्व मे किसान अपनी फसल राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सहकारी सोसायटी में व APMC मंडियों में ही बेच सकते हैं. बदले में उन्हें फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है व विक्रय किए गए अनाज की रकम मिलने की गैरंटी रहती है,नए बिल में किसान बाहर भी अपना उत्पाद बेच सकते हैं उचित रकम मिलने की गारंटी सरकार की नहीं रहेगी जबकि किसान को उसकी नजदीकी मंडी में ही अच्छी कीमत दिलाना सरकार का दायित्व है।
तीसरे कृषि विधेयक मे मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल, 2020 इस बिल मे किसानों को फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता नामा करना है इस समझौते में क्या-क्या होगा ? जिला कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष करण सिंह चौहान ने आरोप लगाया है की इस बिल से किसान व्यापारियों का गुलाम बन जाएगा और उसकी जमीन कुछ दिनों बाद व्यापारी के कर्ज चुकाने में विक्रय हो जाएगी उनहोंने बताया कि सरकारी मंडियों में फसल की एक न्यूनतम कीमत मिलने का प्रावधान था. लेकिन मंडी के बाहर वो न्यूनतम कीमत मिलेगी या नहीं, इसे लेकर कोई नियम इस बिल में नहीं है. किसानों की एक चिंता ये भी है कि एपीएमसी मंडी में जो आढ़तिये अभी उनसे फसल खरीदते हैं, उन्हें मंडी में व्यापार करने के लिए एपीएमसी एक्ट के तहत लाइसेंस लेना होता है. ऐसे में किसान इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि वो धोखाधड़ी नहीं होगी, सरकार स्टॉक करने की छूट दे रही है लेकिन ज्यादातर किसानों के पास भंडारण की व्यवस्था नहीं है ऐसे में उन्हें उत्पादन के बाद अपनी फसलें औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचनी होंगी,प्राइवेट कंपनियों के पास ज्यादा क्षमता और संसाधन होते हैं तो वे इनका स्टॉक करके अपने हिसाब से मार्केट को चलाएंगे ऐसे में फसल की कीमत तय करने में किसानों की भूमिका नहीं रहेगी बड़े व्यापारी और कंपनियों ज्यादा फायदा कमाएंगे।