किसान आंदोलन पर बोली SC, विरोध करना किसानों का मौलिक अधिकार पर ना करें दूसरों के अधिकार का हनन

भोपाल,डेस्क रिपोर्ट। कृषि बिल (Agriculture Bill) को लेकर देशव्यापी किसान आंदोलन (Farmers Protest) का आज 22 वां दिन है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा किसान आंदोलन को लेकर आज सुनवाई होनी थी जो कि टल गई है, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी आदेश (order) जारी नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई ने कहा कि वेकेशन बेंच में मामले की सुनवाई की जाएगी। कोर्ट का कहना है कि किसान संगठन (Farmers Organization)  की बात सुने बिना कोई आदेश जारी नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानून के विरोध (Opposition to agricultural law) में हो रहे धरना प्रदर्शन में किसानों और सरकार के बीच गतिरोध दूर करने के लिए एक समिति गठन (Committee formation) करने के भी संकेत दिए हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ये मुद्दा अब राष्ट्रीय मुद्दा (National issue) बन सकता है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि सरकार को फिलहाल कृषि कानूनों को होल्ड पर रखने को लेकर विचार करना चाहिए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि केस पर अगली सुनवाई अगले हफ्ते की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल का कहना है कि इस किसान आंदोलन में कोई भी किसान फेस मास्क नहीं पहनता है और सभी किसान भारी मात्रा में एक साथ ही बैठते हैं जो कि कोरोनावायरस (Corona Virus) के फैलते संक्रमण को देखते हुए एक चिंता का विषय है। यह किसान गांव जाएंगे और वहां कोरोना वायरस फैलाएंगे। दूसरों के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का किसान हनन नहीं कर सकते।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।