सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि सरकार को फिलहाल कृषि कानूनों को होल्ड पर रखने को लेकर विचार करना चाहिए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि केस पर अगली सुनवाई अगले हफ्ते की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल का कहना है कि इस किसान आंदोलन में कोई भी किसान फेस मास्क नहीं पहनता है और सभी किसान भारी मात्रा में एक साथ ही बैठते हैं जो कि कोरोनावायरस (Corona Virus) के फैलते संक्रमण को देखते हुए एक चिंता का विषय है। यह किसान गांव जाएंगे और वहां कोरोना वायरस फैलाएंगे। दूसरों के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का किसान हनन नहीं कर सकते।
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वही तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि हाल फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकार ही पहली और एकमात्र चीज है जिस पर हम सुनवाई करेंगे, बाकी कानून की वैधता का सवाल अभी इंतजार कर सकता है। सीजेआई ने कहा कि हम कानूनों के खिलाफ चल रहे विरोध करने के मौलिक अधिकार पर आपत्ति नहीं जताते हैं लेकिन एक बात जो गौर करने वाली है कि इसके चलते किसी के जीवन को नुकसान ना हो।
कोर्ट ने कहा कि किसानों को विरोध (Farmers Protest) करने का पूरा हक है और हम इस पर हस्तक्षेप (Interfere) भी नहीं करेंगे, लेकिन विरोध किस तरह से किया जाएगा इस पर हम जरूर गौर करेंगे। नागरिकों के आंदोलन का अधिकार प्रभावित नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि विरोध तब तक वैद्यय (Valid) है जब तक किसी की संपत्ति (Property) या जीवन (Life) को हानि (loss) नहीं पहुंचाता। केंद्र और किसानों से बात करनी होगी। हमें किसान और सरकार दोनों पक्ष को अपनी बात रखने का मौका देना पड़ेगा जिसके बाद ही हम आगे कोई निष्पक्ष फैसला ले पाएंगे।
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वही सुनवाई के दौरान केंद्र का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील ने कहा कि प्रदर्शनकारियों द्वारा दिल्ली से आने वाले रास्तों को ब्लॉक कर दिया गाय है जिसते चलते सब्जियां, फल दूध के दाम बढ़ गए हैं, जिससे अपूर्ण क्षति हो सकती हैं। वकील आगे कहते हैं कि आप शहर को बंदी बनाकर अपनी मांगे पूरी नहीं करवा सकते है। उन्होंने कहा कि विरोध करना मौलिक अधिकार है, लेकिन दूसरो के मौलिक अधिकारों के साथ संतुलन बना कर ही अपने मौलिक अधिकार को लेकर विरोध करना चाहिए। जिस पर सीजेआई ने कहा कि हम प्रदर्शनकारियों के अधिकार (Rights) उनसे नहीं छिनेंगे इसको हम बाधित नहीं करेंगे। लेकिन हम यह साफ तौर पर कहना चाहते हैं कि हम कानून के विरोध में मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हैं। इस पर रोक लगाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता, लेकिन इन अधिकारों से किसी की जान को नुकसान नहीं होना चाहिए।
सीजेआई आगे कहते हैं कि किसी का प्रदर्शन (Protest) का एक गोल होता है, जिसे बिना हिंसा के भी पाया जा सकता है। आजादी के समय से देश इस बात का साक्षी रहा है। सरकार और किसानों को एक दूसरों से बातचीत करनी चाहिए। विरोध प्रदर्शन (Protest) को रोकना नहीं चाहिए। साथ ही संपत्तियों को भी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। सीजीआई कहते हैं कि हम कमेटी गठन करने के बारे में सोच रहे हैं। हम बातचीत कर मामले को सुविधाजनक बनाना चाहते हैं । हम स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति के बारे में सोच रहे हैं। दोनों पक्ष एक दूसरे से बात भी कर सकते हैं अब विरोध प्रदर्शन भी जारी रख सकते हैं। कमेटी कमेटी गठन को लेकर पैनल अपने सुझाव दे सकता है कमेटी में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट जैसे पी साईनाथ जैसे लोग शामिल होंगे