होशंगाबाद, राहुल अग्रवाल। कार्तिक पूर्णिमा पर नर्मदा-तवा नदी के संगम स्थल बांद्राभान में डुबकी लगाने की 200 साल पुरानी परंपरा इस साल कोरोना के कारण टूटेगी। इस बार 28नवंबर को बांद्राभान में लगने वाला मेला नहीं लगेगा। सीईओ जिला पंचायत मनोज सरियाम ने बताया है कि जनपद पंचायत द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर नर्मदा एवं तवा नदी के संगम स्थल बांद्राभान में प्रति वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है, इस वर्ष यह मेला 28 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2020 तक आयोजित किया जाना प्रस्तावित था।
कोविड-19 को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश शासन द्वारा जारी निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में धार्मिक स्थलों पर मेलों के आयोजन आदि पर प्रतिबंध लगाया गया है। कोरोना संक्रमण से सुरक्षा एवं शासन द्वारा जारी निर्देशो के परिप्रेक्ष्य में कलेक्टर धनंजय सिंह द्वारा बांद्राभान मेला स्थगित किया गया है। उल्लेखनीय है कि बांद्राभान मेले में हरदा, बैतूल, सीहोर, राजगढ़, भोपाल, नरसिंहपुर, खंडवा, रायसेन आदि जिलों के श्रद्धालुगण एवं व्यापारी आते हैं। संबंधित जिलों के कलेक्टर्स से अनुरोध किया गया है कि वे भी अपने स्तर पर उक्ताशय की जानकारी का प्रचार-प्रसार करें ताकि स्थगित मेले में श्रद्धालुजन एवं व्यापारीगण न आएं।
सर्वसंबंधितो से कहा गया है कि वे इस संबंध में अपने-अपने स्तर पर आवश्यक कार्यवाही करना सुनिश्चित करें। मेला अवधि में बांद्राभान पहुँच मार्ग पर बेरिकेटिंग के माध्यम से रोक लगाई जाए एवं उक्त अवधि में कोई स्नान न करे। उक्त निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाए। होशंगाबाद से 8 किमी दूर बांद्राभान में हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर मेला लगता है। इस दिन संगम पर स्नान करने का महत्व है। मेले में करीब 500 अस्थाई दुकानें लगती, झूले लगते हैं। लोग परिवार के साथ मेले में आते हैं और दाल-बाटी चूरमा बनाकर मां नर्मदा को भोग लगाते हैं। हालांकि इस साल मेला नहीं लगेगा।
चार दिनों तक चलता है संगम पर मेला, शादियां भी होती है तय
बांद्राभान में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला मेला 4 दिनों तक चलता है। लोग दूर दूर से आकर यहां रुकते हैं। आरटीओ मेले के लिए विशेष बसें चलाता है तो पीएचई विभाग पीने की पानी व्यवस्था करता है। चार दिनों के लिए विशेष चौकी भी बनाई जाती है। मेले में शादियां भी तय करने की परंपरा है।
बांद्राभान मेले का ये है महत्व
बांद्राभान में लगने वाले मेले का विशेष महत्व है। यहां पर नर्मदा और तवा नदी का संगम होता है। मान्यता है पूर्व में एक राजा को वानर की आकृति से यहां मोक्ष मिला था। तभी से मेला लगता है। पूर्णिमा के दिन संगम स्थल पर डुबकी लगाने से लोगों की मनोकामना पूरी होती हैं। किवदंती है कि संगम पर कई तपस्वियों ने मोक्ष के लिए तपस्या की थी। इसी कारण पूरे प्रदेश से लोग यहां आते हैं। तीन से चार दिन तक यहां रुकते हैं।