मुंबई , डेस्क रिपोर्ट । आज वेलेंटाइन डे है । बॉलीवुड हमेशा अपने लव स्टोरी वाली फिल्मों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा । बॉलीवुड की शुरुआत से ही फिल्मों का आधार प्यार रहा। माइथोलॉजीकल फिल्मों की बात हो या , फिर राज कपूर की फिल्मों की सब में लव स्टोरी का अलग ही ट्रैक रहा। लेकिन समय के साथ-साथ प्यार की परिभाषा भी बॉलीवुड की फिल्मों में बदली। जहां बॉलीवुड का ब्लैक एंड वाइट का दौर सामाजिक कहानियों और प्रेम कहानियों का रहा, तो वही 90 का दशक शाहरुख खान, अनिल कपूर और सलमान खान के खूबसूरत कहानियों और नोकझोंक वाला रहा । बॉलीवुड के शुरुआत की प्रेम कहानियों में लड़का और लड़की के बीच के प्रेम संबंधों को दर्शाया जाता था, लेकिन आज भारत में बॉलीवुड की कहानियां अपना रूप बदलती नजर आ रही हैं। आज की फिल्मों में प्यार केवल लड़का या लड़की के बीच का नहीं रहा बल्कि एलजीबीटी ( LGBT) के संबंधों को भी समाज में उजागर कर रहा है। अब की नई फिल्मों का बेस काफी ज्यादा सरल और सामाजिक समस्याओं -उलझनो को दर्शना होता है। एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, बधाई दो , कपूर एंड संस, Bombay talkies , अलीगढ़ ऐसी फिल्मों के लिस्ट में शामिल हैं ।
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इन फिल्मों ने ना सिर्फ समाज की आंखों में बने प्यार की परिभाषा को बदलने मदद की , बल्कि समाज को एक आईना भी दिखाया। इन फिल्मों कि कहानियों को देखकर यह समझा सकता है कि, प्यार की कोई सीमा नहीं होती । प्यार ना जात देखता है , ना ही लिंग और गरीबी। Ek ladki Ko dekha to Aisa Laga , ऐसी फिल्म है जिसमें सोनम कपूर ने प् सोनम कपूर , राजकुमार राव और अनिल कपूर मुख्य किरदार में नजर आए हैं । इसमें लड़की लेसबियन रहती है और उसे किसी और से प्यार होता है , लेकिन उसका परिवार उसकी शादी किसी लड़के से करवाना चाहता है । यह फिल्म LGBT समुदाय के प्रेम संघर्ष को दिखाता है, तो वैसे ही फिल्म हाल ही में रिलीज हुई “बधाई दो” है , जिसमें पति -पत्नी एक दूसरे से शादी के बंधन में बंध जाते हैं, लेकिन किसी और से प्यार करते हैं। पूरी जिंदगी दुनिया से अपनी सच्चाई छुपाते हैं, उनमें समाज के पिछड़ी सोच से लड़ने की शक्ति नहीं होती , लेकिन अंत में उनका सर्च सबको पता चल जाता है और वह उसे अपना कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना भी सीख जाते हैं। बॉलीवुड की कुछ फिल्मों ने भारतीय समाज में LBGBT के संघर्ष को दिखाता है । आज वेलेंटाइन डे है , और फिल्मों को देख समझ जा सकता है की प्यार कि सच में कोई परिभाषा नहीं होती ।