Lal Singh Chaddha : ‘फॉरेस्ट गम्प’ का संस्करण लाल सिंह चड्ढा, भारतीय परिप्रेक्ष्य में उससे भी बेहतर

                                                      “लाल सिंह चड्ढा”

यह फ़िल्म एक 50 साल के इंसान की कहानी है जिसके पास नकारात्मक दिमाग कम और निर्दोष दिल ज्यादा है। फ़िल्म इस बात से ही शुरू होती है कि यह ‘फॉरेस्ट गम्प’ का भारतीय संस्करण है। इस फ़िल्म का डिस्क्लेमर सम्भवतः सबसे बड़ा डिस्क्लेमर है। यह क्यों है, यह समझना आसान है। बहरहाल, फ़िल्म की कहानी नहीं बताऊंगा क्योंकि यह कई कहानियों से मिली हुई और कुछ अविश्वसनीय सी है।पर यह कह सकता हूँ कि ‘फॉरेस्ट गम्प’ का यह संस्करण भारतीय परिप्रेक्ष्य में उससे भी बेहतर है।

फ़िल्म की शुरुआत में किसी परिंदे का सफेद पंख हवाओं में उड़ता फिरता है। यह पंख लालसिंह चड्ढा (आमिर खान) के जीवन का प्रतीक है क्योंकि इसी तरह उसकी जिंदगी है, जैसा वक्त आता है, वह वैसा होता जाता है बिना किसी किंतु परन्तु के। फ़िल्म की खास बात है लालसिंह चड्ढा के जीवन के साथ – साथ चलती पिछले 50 सालों में हुई घटनाएं। जैसे – 1975 का आपातकाल, 1983 का क्रिकेट वर्ल्ड कप, ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या फिर सिख विरोधी दंगे, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा, 1992 के दंगे, मुम्बई ब्लास्ट, सुष्मिता सेन का मिस यूनिवर्स बनना, करगिल युद्ध, 2008 का मुम्बई अटैक, अन्ना हजारे का लोकपाल आंदोलन, अबकी बार मोदी सरकार का पोस्टर और गांधी के चश्मे वाला स्वच्छ भारत अभियान। जिनकी भी उम्र 50 साल हो रही है, वे इस कहानी से बहुत अच्छा कोरिलेट कर सकते हैं। एक दृश्य टीवी पर किसी मौलाना द्वारा 72 हूरों की प्राप्ति पर है जिसे एक भूतपूर्व आतंकी द्वारा खारिज किया जाता है। हालांकि यह तमाम दृश्य एक घटना मात्र की तरह फ़िल्म में आई हैं पर बताती हैं कि एक भला इंसान इस पूरे दौर के साथ भी भला बना रह सकता है।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।