साउथ सुपरस्टार महेश बाबू के पिता का निधन, कार्डियक अरेस्ट के चलते अस्पताल में हुए थे भर्ती, सीएम ने जताया शोक

Pooja Khodani
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हैदराबाद, डेस्क रिपोर्ट। साउथ सुपरस्टार महेश बाबू के पिता और तेलुगू एक्टर कृष्णा घट्टामनेनी (Ghattamaneni Krishna) का 79 साल की उम्र में निधन हो गया है। हैदराबाद के प्राइवेट अस्पताल में उन्होंने आज मंगलवार सुबह 4 बजे अंतिम सांस ली। सोमवार को ही हार्ट अटैक और सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें कॉन्टिनेंटल अस्पताल में एमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती कराया गया था। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कृष्णा घट्टामनेनी के निधन पर शोक जताया है।

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महेश बाबू के पिता कृष्णा घट्टामनेनी जाने माने तेलुगू एक्टर थे, तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री में कृष्णा घट्टामनेनी के निधन की खबर से मातम पसरा हुआ है, उन्हें सुपरस्टार कृष्णा के नाम से जाना जाता था। महेश बाबू के पिता के निधन की खबर सुनते ही फैंस इमोशनल हो गए हैं, सोशल मीडिया पर फैंस और सेलेब्स टॉलीवुड के दिग्गज स्टार को नम आंखों से #RIPLEGEND श्रद्धांजलि दे रहे हैं।  आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भी दिग्गज एक्टर कृष्णा के निधन पर दुख जताया है।

फैंस अपने फेवरेट स्टार के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए ट्विटर पर ‘RIP लीजेंड‘ ट्रेंड कर रहे हैं। ट्रेंडिंग हैशटैग के साथ एक फैन ने ट्वीट किया, “एक युग का अंत।” एक और ने पोस्ट किया, “रेस्ट इन पीस, सुपरस्टार”करीब दो महीने पहले ही अभिनेता महेश बाबू की मां इंदिरा देवी का निधन हुआ था, महेश की मां इंदिरा देवी लंबे समय से बीमार थीं, हालत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।  इंदिरा की गंभीर हालत को देखते हुए उन्हें भी वेंटिलेटर पर रखा गया था।  वही इस साल की शुरुआत में उन्होंने बड़े भाई को भी खोया था।

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महेश बाबू के पिता कृष्णा को तेलुगू सिनेमा के सबसे बड़े अभिनेताओं से एक माने जाते थे। उन्होंने कई फिल्मों को डायरेक्ट और प्रोड्यूस भी किया है। उन्होंने अब तक लगभग 350 फिल्मों में काम किया था और अपने करियर की शुरुआत कुला गोथरालु (1961), पदंडी मुंधुकु (1962), और परुवु प्रतिष्ठा (1963) जैसी फिल्मों से की थी। इसके बाद थेन मानसुलु (1965) में एक लीड एक्टर और फिर आगे  मोसागलगु मोसागडु, अल्लूरी सीता रामाराजू, गुडाचारी 116, जैसी फिल्मे बनाई।

 


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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