दरअसल केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका प्रस्तुत की गई थी। जिसमें एक तरफ जहां न्यायालय के न्यायाधीशों पर आरोप लगाए गए थे। वही न्यायिक अधिकारियों के सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाकर 75 वर्ष किए जाने की भी मांग की गई थी। हालांकि हाईकोर्ट ने यह पाया कि इस याचिका में कुछ आरोप ऐसे हैं। जो बेहद गंभीर है और अदालत इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं। बावजूद इसके अदालत ने टिप्पणी करना ही सही समझा।
दरअसल उच्च न्यायालय ने पाया कि एक याचिका में न्यायाधीशों पर गंभीर आरोप लगे हैं। याचिका में कहा गया है कि न्यायाधीश अपराधियों के साथ मिले थे और सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति प्राप्त की थी जो कि बेहद गंभीर मसला है। अब्दुल जलील द्वारा दायर इस याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।
मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाली की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायपालिका के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं लेकिन अदालत मांगी गई राहत की प्रकृति को देखते हुए इस के संदर्भ में कोई आदेश पारित नहीं करता है।
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अदालत ने कहा कि सेवानिवृत्ति आयु पर केंद्र सरकार को फैसला लेना चाहिए। बता दें कि इससे पहले याचिकाकर्ता द्वारा हाईकोर्ट में महत्वपूर्ण टिप्पणी की गई। हाईकोर्ट की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय से न्याय की अधिकारियों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाकर 75 वर्ष करने के लिए कदम उठाने के निर्देश देने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने केंद्र को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की है कि न्यायिक अधिकारी सेवानिवृत्त के बाद सरकार में कोई पद स्वीकार ना करें।
इतना ही नहीं याचिकाकर्ता ने मांग की गई थी कि सभी उच्च न्यायालय में सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ की स्थापना की जाए। जो केवल गरीब और निराश्रित के मामलों की सुनवाई करें। वही याचिका में कहा गया था कि सर्वोच्च न्यायालय जनरल को इस याचिका को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने के लिए कदम उठाने के निर्देश दिए जाए।
इसके अलावा केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठाने के निर्देश दिए जाए कि न्यायिक अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद सरकार का कोई पद स्वीकार्य नहीं करेंगे। साथ ही याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से पेश होते हुए अदालत ने तर्क दिया था कि सरकार को संविधान में संशोधन कर के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाना चाहिए।
याचिका के अन्य मांगों पर तर्क देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पद को स्वीकार करने से भी रोकना सुनिश्चित किया जाए ताकि सरकार न्यायपालिका को प्रभावित न कर सके और न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाया जा सके। हालाकि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के न्यायाधीशों पर लगाए गंभीर आरोप को दरकिनार करते हुए सेवानिवृत्ति आयु सहित अन्य मांगों की याचिका को खारिज कर दिया है। वही सेवानिवृत्ति आयु के मसले को केंद्र सरकार का करार देते हुए हाईकोर्ट ने गरीब और वंचितों के त्वरित न्याय सुनिश्चित करने सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ की स्थापना की मांग को भी खारिज किया है।