नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने मां के हक में बड़ा फैसला सुनाया है। पुनर्विवाह करने वाली महिलाओं के अधिकारों को लेकर उच्चतम न्यायालय ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में हाई कोर्ट (High court) को उनके निर्णय पर फटकार लगाई है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा है कि बच्चे की एकमात्र प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते मां को अपने बच्चे के सरनेम तय करने का अधिकार है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई की जा रही थी। सुनवाई का बड़ा मुद्दा था कि क्या मां, जो जैविक पिता की मृत्यु के बाद बच्चे की एकमात्र प्राकृतिक और कानूनी अभिभावक है, उसे बच्चे के उपनाम तय करने का अधिकार है? क्या पुनर्विवाह के बाद वह अपने बच्चे को दूसरे पति का उपनाम दे सकती है? इसके अलावा क्या उच्च न्यायालय के पास अपीलकर्ता को बच्चे का उपनाम बदलने के निर्देश देने की शक्ति है? और यदि महिला पुनर्विवाह करती है तो क्या वह अपने दूसरे पति को यह अधिकार दे सकती है कि वह उसके बच्चे को गोद ले।
उच्चतम न्यायालय में इन सभी सवालों के जवाबों पर हो रही सुनवाई के बीच न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता के पति का नाम दस्तावेज में “सौतेला पिता” के रूप में दर्ज करने का उच्च न्यायालय का निर्देश क्रूर प्रतीत होता है। वही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आदेश किस तरह से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान को प्रभावित करेगा, कोर्ट इस बात से बेपरवाह है।
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दरअसल इस मामले में अपीलकर्ता द्वारा आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी। इस अपील में बच्चे के मृत पिता की मां और माता-पिता के बीच का विवाद का विषय बच्चे को दिए जाने वाला उपनाम था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पहले पति की मृत्यु के बाद दूसरी शादी करने पर पहले पति से पैदा हुए संतान को अपने नए परिवार में शामिल करने से महिला को नहीं रोका जा सकता। बच्चे की एकमात्र प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते मां को उसके परिवार और उपनाम तय करने का अधिकार मिलता है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दस्तावेज में दूसरे पति का नाम सौतेले पिता के रूप में शामिल करने का हाई कोर्ट का निर्देश लगभग क्रूर और नासमझ प्रतीत होता है। सौतेले पिता शब्द के साथ दस्तावेज में नाम रहने पर इससे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और आत्मसम्मान पर असर पड़ेगा।
बता दे कि पति की मृत्यु के बाद महिला ने पुनर्विवाह किया था। जिसके बाद बच्चे के Surname को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। इस पर मां ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी। जिस पर हाईकोर्ट ने याचिका पर दस्तावेज में दूसरे पति का नाम सौतेला पिता के रूप में शामिल करने के निर्देश दिए थे। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने मां को बच्चे का सरनेम तय करने सहित अपने नए परिवार में शामिल करने का अधिकार दिया है।