MP: देश के पहले गौ अभ्यारण्य में 30 गायों की मौत, भाजपा नेता हुए आक्रामक

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आगर मालवा। गिरीश सक्सेना। 

जिले के सालरिया में स्थित देश के पहले गोआभ्यारण कामधेनु में ना तो गायो की मौत का सिलसिला रुक रहा है और ना गायो की मौत पर होने वाली राजनीति का। अभी तक गायो की मौत के लिए आलोचना झेल रहे भाजपा के जनप्रतिनिधि अब सरकार बदलते ही इस विषय पर स्वयं आक्रामक होने लगे है । इसी के चलते सुसनेर के पूर्व विधायक मुरलीधर पाटीदार कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकारों को लेकर गोअभ्यारण्य पहुँच गए और फिर सामने जो स्थिति थी वह वास्तव में भयावह थी।

अभयारण में जहां एक और तीस से अधिक गाय मरणासन्न स्थिति में पड़ी थी वहीं एक नवजात बछिया की एक आँख कौए नोच कर खा चुके थे । इस प्रकार की स्थिति देख वहां पहुचे पूर्व विधायक, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने अभयारण के स्टाफ की मौजूदगी में  पंचनामा बनाया है। अब एक तरफ पूर्व भाजपा विधायक का कहना है कि ये अधिकारियों और सरकार की लापरवाही का नतीजा है। वहीं अधिकारी इन मोतो के लिए क्षेत्र में जारी शीत लहर के साथ ही ग्रामीणों द्वारा छोड़ी गई पूर्व से बीमार गायो को बता रहे है।

हम आपको बता दे कि दिसम्बर 2012 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने प्रदेश के मुख्यमत्री शिवराजसिंह के साथ ही प्रदेश के अनेक मंत्रियों की उपथिति में बड़े जोरशोर से देश के इस पहले गोआभ्यारण का शिलान्यास किया था जिसमे कई प्रकार के अनुसंधान केंद्र भी खुलने वाले थे पर समय के साथ साथ कई कारणों के चलते यह उत्साह फीका होता गया और कई बार निर्माण कार्यो में भी भृस्टाचार के आरोप लगे और फिर अंततः सितंबर 2017 को एक साधारण से कार्यक्रम के साथ इस गोआभ्यारण कि शुरुवात की गई ।वर्तमान में इस अभ्यारण में करीब 4700/- गाय है और कई कारणों के चलते या फिर प्राकृतिक रूप से यहां रोज कई गायो की मौत हो जाती है ।

गो अभयारण को शुरू करने और फिर बाद में यहां लगातार हो रही गायों की मोत को लेकर कांग्रेस पहले भी आंदोलन कर चुकी है और अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने इसको प्रमुख मुद्दों में शामिल किया था और उसका ही प्रभाव था कि सुसनेर विधानसभा में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और यही कारण था कि गोआभ्यारण के चलते क्षेत्र में हुए करोड़ो रुपयों के विकास कार्य के बाद भी सालरिया पोलिंग बूथ से भाजपा को सिर्फ पांच वोट मीले थे। अंत मे कहा जा सकता है कि प्रदेश में सरकार भी बदली और सरकार के साथ साथ गाय की मौत पर आंदोलन करने वाले आंदोलनकारी भी बदले पर यदि कुछ नही बदला तो वो है इस अभयारण में रह रही गायो की मौत का सिलसिला ।


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