‘कागज’ फिल्म की तरह खुद को जिंदा साबित करने भटक रहा एमपी का एक किसान

सागर, डेस्क रिपोर्ट। हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) की सच्ची घटना पर आधारित फिल्म ‘कागज’ (Film Kagaj) आई थी। जिसमें एक किसान (Farmer) खुद को जिंदा साबित करने के लिए कागज लेकर सरकारी दफ्तरों (government offices) के चक्कर काट रहा था, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हो रही थी। ऐसा ही मामला रियल लाइफ में मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के सागर जिले (Sagar district) से सामने आया है, जहां ‘कागज’ देखने को मिला है। जहां एक बुजुर्ग किसान खुद को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रहा है। बता दें कि बुजुर्ग किसान (Elderly farmer) को दो साल पहले पीएम किसान सम्मान निधि (PM Kisan Samman Nidhi) की पहली किश्त दी गई थी। उसके बाद उसे पोर्टल (Portal) पर मृत घोषित कर दिया गया। जिसके बाद से किसान लगातार खुद को जिंदा साबित (Prove myself alive) करने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगा रहे है, लेकिन प्रशासन है कि आंख मूंदे बैठा हुआ है।

खुद को जिंदा साबित करने दर-दर भटक रहा किसान


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।