इस सीट पर भंवर में फंसे बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवार, अपने ही बने ‘कांटा’

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भोपाल। लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही उम्मीदवार अपने लोकसभा संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने में जुट गए हैं। लेकिन इस बार दोनों ही दलों के लिए जीत हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं है। दमोह सीट पर बीजेपी और कांग्रेस ने अपने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। लेकिन दोनों ही पार्टियों को भितरघात का डर सता रहा है। कांग्रेस में ये अंतर्कलह खुलकर सामने आ गई। 

दरअसल, कांग्रेस ने दमोह सीट से प्रताप लोधी को उम्मीदवार घोषित किया है। उन्होंने घोषणा के बाद शक्ति प्रदर्शन दिखाने के लिए एक रैली निकाली लेकिन इस रैली में कांग्रेस के स्थानीय विधायक शामिल नहीं हुए। जो चर्चा का विषय बना हुआ है। एक दिन पहले, रामकृष्ण कुसुमरिया ने तेंदूखेड़ा में इसी तरह की रैली के साथ शक्ति प्रदर्शन का आयोजन किया था, जिसमें यह अनुमान लगाया गया था कि उन्हें टिकट मिलेगा। कुसुमारिया जो पार्टी में शामिल हुए थे, ने हाल ही में कांग्रेस की सहमति के बिना अपनी रैली का आयोजन किया।

कांग्रेस की तरह बीजेपी के हालात भी खराब

बीजेपी में भी भितरघात को लेकर पार्टी में चिंता है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक सांसद प्रहलाद पटेल के रिश्ते पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के बीच बहुत अच्छे नहीं हैं। दोनों ही नेता बुंदेलखंड के बड़े चेहरे माने जाते हैं। गोपाल भार्गव रेहली विधानसभा से विधायक हैं। यह विधानसभा दमोह लोकसभा का हिस्सा है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि चार विधानसभा क्षेत्रों के पार्टी के कुछ विधायक वास्तव में प्रहलाद पटेल के समर्थक हैं। वे पार्टी के उम्मीदवार प्रताप लोधी का समर्थन नहीं कर सकते। ”

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आठ विधानसभाओं में से चार पर जीत हासिल की है। अगर वोट की गणित में झांका जाए तो नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते दिख रहे हैं। लेकिन बीजेपी के पास जाति कार्ड है जिससे माहौल उसके पक्ष में बन सकता है। बीजेपी ने तीन सीटों पर जीत हासिल की है। जबकि, पथारिया से बीएसपी विधायक रामबाई को जीत मिली थी। इस सीट पर लोधी और कुर्मी वोटर की संख्या अधिक है. यह सीट एससी उम्मीदवार के लिए आरक्षित है और दोनों ही उम्मीदवार लोधी समुदाय से आते हैं। 

बुंदेलखंड के स्थानीय पत्रकार नरेंद्र दुबे ने बताया कि इस बार चुनाव में किसी भी उम्मीदवार के लिए हवा जैसा माहौल नहीं है। चुनाव इस बार व्यक्तिगत चेहरे पर लड़ा जा रहा है। उन्होंंने दावा किया है कि दोनों ही उम्मीदवारों को इस बार भितरघात का खतरा है। कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या के बाद की घटनाओं की श्रृंखला भी पटेल के पक्ष में जा सकती है। पटेल ने मामले में जिला पंचायत अध्यक्ष के बेटे की कथित संलिप्तता के खिलाफ एफआईआर का विरोध किया था। परिणामस्वरूप, कुर्मी लोग उनका समर्थन कर सकते हैं। इसके अलावा कुसुमारिया को टिकट नहीं दिए जाने के बाद कुर्मी भी खुश नहीं हैं


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