अलविदा साशा : मादा चीता ने बीमारी के बाद दम तोड़ा, प्रोजेक्ट चीता को बड़ा झटका

“कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में”

ये शेर एक चीते के लिए कितना माक़ूल साबित हुआ है आज। रंगून की जेल में कैद बादशाह बहादुर शाह जफर ने अपने वतन की याद में ये शेर लिखा था। अपनी ज़मीन से दूर होने का दर्द सहना बहुत मुश्किल होता है। फिर चाहे वो इंसान हो या जानवर..सभी के लिए ज़मीन से कटना पीड़ादायक है। इंसान तो फिर भी अपनी तकलीफ को बोलकर ज़ाहिर कर सकता है, लेकिन बेजुबान जानवर क्या करें। वो तो बता भी नहीं सकते कि उन्हें क्या तकलीफ है..उन्हें तो बस इंसान के रहमो-करम पर ही रहना होता है। सोमवार को ये बुरी खबर आई कि विदेश से आई मादा चीता साशा की मौत हो गई है।

कहीं जन्मी..कहीं पहुंची..कहीं आखिरी सांस ली। ‘साशा’ को अभी जुम्मा-जुम्मा छह महीने ही तो हुए थे हिंदुस्तान आए। नामीबिया से आई मादा चीता साशा 22 जनवरी से ही बीमार चल रही थी। उसकी तबियत खराब देख स्वास्थ्य जांच के बाद उसे अलग बाड़े में क्वारेंटाइन कर दिया गया। चिकित्सकों के मुताबिक उसके गुर्दों में संक्रमण पाया गया। इसके बाद तत्काल नामीबिया में संपर्क कर उसकी पहले की स्वास्थ्य रिपोर्ट ली गई और हालिया स्थिति के आधार पर उपचार शुरू हुआ लेकिन उसकी हालत ठीक नहीं हुई। इस दरमियान जब उसकी बीमारी की खबर फैली तो नेशनल पार्क के बाहर श्योपुर के लोगों द्वारा मंदिर में “साशा”  के लिए भजन पूजन भी किया गया। उम्मीद थी कि दवा और दुआ मिलकर कुछ तो असर करेंगे। लेकिन सोमवार को ये दुखद सूचना आई कि साशा इस दुनिया को अलविदा कह गई है।

जाने क्या होता होगा आखिरी वक्त में…जानवरों को भी तो अपने बीतें दिन याद आते होंगे न। ये भी तो मुमकिन है कि वो अपने घर को याद कर रही हो। यहां का माहौल पता नहीं उसे रास आया भी था या नहीं। किसी से दोस्ती हुई भी या नहीं। जाने साशा ने इस देश की बोली को समझना शुरू भी किया था या नहीं। कहीं यहां के दूसरे पशु उसे बुली तो नहीं करते होंगे न। यूं ‘साशा’ का जाना कितने अजीब सवाल पैदा कर रहा है ज़हन में..जो शायद ऊलजलूल भी लग सकते हैं। लेकिन जब बात जज़्बात की आती है तो भला कहां काम करता है दिमाग। इस समय तो यही महसूस हो रहा है कि जिसे हम इतने प्यार से लेकर आए थे..वो इस धरती पर महज़ 6 महीने ही बिता पाई। उसका जाना ‘प्रोजेक्ट चीता’ के लिए एक बड़ा झटका तो है ही..लेकिन ये अलार्म भी है कि बाकी चीतों की देखरेख में भी अतिरिक्त संवेदनशीलता बरती जाए। साशा को भरे मन से जाते हुए देख रहे हैं..लेकिन हम तुम्हें हमेशा याद रखेंगे। अलविदा साशा!


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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