भोपाल। भारतीय जनता पार्टी में बड़े नेताओं की उपेक्षा से नाराज कई दिग्गज कांग्रेस में शामिल हो गए है। जिन नेताओं ने अपना जीवन पार्टी को स्थापित करने में झोंक दिया वहीं अब हाशिए पर हैं। इनमें पूर्व कृषि मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता रहे रामकृष्ण कुसमरिया भी शामिल हैं। हाल ही में उन्होंने बीजेपी से तंग आकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। कुसमारिया का कहना है कि अब बीजेपी में पुराने नेताओं को तवज्जो नहीं दी जाती। उन्होंने कहा कि जब वह कृषि मंत्री थे तब गुजरात में एक कृषि सम्मेलन में उनसे अमित शाह गर्मजोशी से मिले थे। लेकिन अब मंजर बदल गया है। बीते पांच साल में उनसे मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। उनके मुताबिक वह अमित शाह से 5 साल में एक अदद मुलाकात के लिए तरस गए।
उन्होंने एक साक्षात्कार में बीजेपी पर जमकर बड़ास निकाली। यही नहीं उन्होंने कई दिग्गज नेताओं पर गंभीर आरोप भी लगाए। जब उनसे पूछा गया कि क्या अब शाह वरिष्ठ नेताओं से मिलने के लिए समय नहीं देते? इस सावल के जवाब में उन्होंने कहा कि ये प्रवृत्ति अब प्रदेश संगठन में आ गई है। अब सिर्फ राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल से ही मिल सकते हैं। लेकिन वह सिर्फ एक मोहरे की तरह हैं। मैं अटल बिहारी वायपेयी और राजमाता सिंधिया के समय पार्टी में शामिल हुआ था और पार्टी के विचारों का पालन करता रहा। लेकिन पार्टी नेताओं जो कहते हैं उस पर अमल नहीं करते। अब पार्टी में नेताओं के बीच गुटबाजी हो गई है। सबके अपने अपने गिरोह हो गए हैं। अपने खास लोगों को ही अब टिकट दिया जाता है। और इसका नेतृत्व खुद अमित शाह कर रहे हैं। अब तीन प्रदेशों में बीजेपी की हार हुई तो शाह को हार की नैतिक जिम्मेदारी लेना चाहिए। उनके नेतृत्व में बीजेपी दिल्ली और बिहार में भी हारी। अगर बीजेपी को बचाना है तो अमित शाह से अविलंब इस्तीफा लेना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी नेताओं ने कहा कि मेरे जाने से पार्टी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मैंने भाजपा नेताओं से कहा कि अगर उन्हें विधानसभा चुनाव में मिली हार से अबतक सबक नहीं मिला है तो वह अब लोकसभा चुनाव के दंगल देखने तैयार हो जाएं।
गौरतलब है कि कुसमारिया 5 बार सांसद और तीन बार विधायक, मंत्री रह चुके हैं। 2014 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। तब से पार्टी में वह साइडलाइन चल रहे थे। कुसमारिया ने विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी से टिकट की मांग की थी। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। जिससे खफा होकर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए दमोह और पथारिया विधानसभा से चुनाव लड़ा। हालांकि, उन्हें जीत तो नहीं मिली लेकिन उन्होंने भाजपा को सख्त तेवर दिखाते हुए अपनी ताकत का अंदाजा करवा दिया।