International Day of Sign Languages : सभी के लिए खुले संवाद के द्वार, अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस पर जानिए उद्देश्य, महत्व और इस साल की थीम

इस दिन का लक्ष्य वैश्विक स्तर पर सांकेतिक भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन को प्रोत्साहित करना है। सांकेतिक भाषा बधिर लोगों के लिए संचार का मुख्य साधन होती है और इसे उनके अधिकारों के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। इस दिन का उद्देश्य इस बात को समझाना है कि बधिर लोगों के लिए सांकेतिक भाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सेवाओं तक पहुँच का अधिकार एक मूलभूत मानवाधिकार है। ये दिन यह संपूर्ण समाज के लिए भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को समझने और स्वीकार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है।

International Day of Sign Languages : आज अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस है। हर साल 23 सितंबर को ये दिन मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य बधिर समुदाय की सांकेतिक भाषाओं की अहमियत को समझाना और उन्हें समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए जागरूकता फैलाना है।

विश्व बधिर संघ (World Federation of the Deaf) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रयासों से इस दिन पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि बधिर व्यक्तियों को उनकी मातृभाषा यानी सांकेतिक भाषा में शिक्षा और सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएं। यह उनके आत्म-सशक्तिकरण, सामाजिक समावेश और मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। सीएम डॉ मोहन यादव ने इस दिन पर आह्वान किया है कि हम सब इसके प्रचार-प्रसार में सहयोग करें।

क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) हर साल 23 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य बधिर समुदाय की सांकेतिक भाषाओं की अहमियत को समझाना और उन्हें समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए जागरूकता फैलाना है। यह दिन बधिर समुदाय की सांकेतिक भाषाओं के महत्व को उजागर करने और उनकी सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इस दिन का उद्देश्य न केवल जागरूकता फैलाना है, बल्कि बधिर व्यक्तियों के अधिकारों और उनकी संवाद क्षमताओं को भी प्रोत्साहित करना है।

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की शुरुआत

हर साल 23 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिन 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प ए/आरईएस/72/16 द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में सांकेतिक भाषाओं के महत्व को मान्यता देना और बधिर समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य सांकेतिक भाषा और उससे जुड़ी सेवाओं, विशेष रूप से सांकेतिक भाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक बधिर व्यक्तियों की पहुँच को सुनिश्चित करना है, जो उनके समग्र विकास और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आज का दिन यह दिवस बधिर लोगों के सांस्कृतिक, शैक्षिक, सामाजिक और भाषाई अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

पहली बार यह दिवस 23 सितंबर 2018 को मनाया गया, जो कि बधिर लोगों के अंतर्राष्ट्रीय संघ (World Federation of the Deaf – WFD) की स्थापना की वर्षगांठ से मेल खाता है। इस संघ की स्थापना 1951 में हुई थी, और यह बधिर समुदाय के अधिकारों के लिए काम करता है। संयुक्त राष्ट्र और विश्व बधिर संघ जैसी संस्थाएं अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के माध्यम से वैश्विक स्तर पर बधिर लोगों के अधिकारों को आगे बढ़ाने और सांकेतिक भाषा की महत्ता को स्वीकार करने के लिए प्रयासरत हैं।

इस साल की थीम 

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 2024 की थीम है Sign Up for Sign Language Rights। इस वर्ष यह थीम सांकेतिक भाषा के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और बधिर समुदायों के लिए उनके अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर जोर देती है। विश्व भर में देश के नेता और संगठनों से आह्वान किया गया है कि वे सांकेतिक भाषा के अधिकारों के समर्थन में अपने राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा में हस्ताक्षर करके अपनी भागीदारी दिखाएं। इसका उद्देश्य बधिर व्यक्तियों के मानवाधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है

इस दिन का महत्व

  • भाषाई विविधता को बढ़ावा: सांकेतिक भाषा केवल बधिर लोगों के लिए नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए भाषाई विविधता का एक अनमोल हिस्सा है।
  • शिक्षा का सशक्तिकरण: बधिर बच्चों को उनकी मातृभाषा यानी सांकेतिक भाषा में शिक्षा का अधिकार है, जिससे वे समग्र विकास कर सकें।
  • सामाजिक समावेश: सांकेतिक भाषा के माध्यम से बधिर लोग समाज के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं, जिससे सामाजिक एकता और समावेश बढ़ता है।
  • मानवाधिकार: यह दिवस बधिर लोगों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए समतामूलक समाज के निर्माण का समर्थन करता है।

भाषाई और सांस्कृतिक विविधता की पहचान

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस इस बात पर जोर देता है कि सांकेतिक भाषा का संरक्षण भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का एक अभिन्न हिस्सा है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि सांकेतिक भाषा भी एक जीवंत और पूर्ण भाषा है, जो न केवल बधिर समुदाय के लिए, बल्कि समाज के लिए समग्र रूप से एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है।

हालांकि, कई देशों में सांकेतिक भाषा को अभी भी उचित मान्यता और स्थान नहीं मिल पाया है। इसके साथ ही, बधिर समुदाय के लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। ऐसे में इस दिवस का उद्देश्य सांकेतिक भाषा को सशक्त माध्यम बनाना और बधिर लोगों के अधिकारों की रक्षा करना है।

अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस हमें यह याद दिलाता है कि सभी भाषाओं का सम्मान किया जाना चाहिए, चाहे वे सांकेतिक हों या अन्य। यह दिन बधिर समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समावेशी समाज और शिक्षा के अधिकार की दिशा में हमारा मार्गदर्शन करता है।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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