International Women’s Day 2023 : स्त्री-विमर्श और यूनिवर्सल सिस्टरहुड का सिद्धांत, सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत

International Women’s Day 2023 : आज होली और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक साथ है..इसलिए हम ये कामना कर सकते हैं कि स्त्री के जीवन में भी वो सभी रंग खिले, जो प्राकृतिक और सामाजिक रूप से हर मनुष्य को अधिकार है। हर साल 8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘चयनित राजनीतिक और मानव अधिकार विषयवस्तु के साथ महिलाओं के राजनीतिक एवं सामाजिक उत्थान के उद्देश्य के साथ’ इस दिवस को मनाया जाता है। दुनिया में महिलाओं को समानता, सुरक्षा और सम्मान मिले..ये इस दिन को मनाने की मूल भावना है।

समय व परिस्थिति सापेक्ष है स्त्री-विमर्श 

सबसे पहले 1909 में न्यूयॉर्क में एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में ये दिन मनाया गया था। सोवियत संघ ने 1917 में इस दिन को  राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया और फिर इसका प्रचार आसपास के देशों में भी हुआ। आज दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस प्रमुखता से मनाया जाता है। इस दिन महिला अधिकारों और समानता की बात होती है। आज भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाएं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। इसके इतिहास पर नज़र डालें तो शुरूआत में महिलाओं ने वोट डालने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी। तब से लेकर आज तक स्त्री-विमर्श ने कई तरह दौर देखे। हमें ये मानना पड़ेगा कि स्त्री-विमर्श और संघर्ष भी समय और परिस्थिति सापेक्ष होता है। जिस स्थान पर आज भी कन्या भ्रूण हत्या की जाती है वहां एक बच्ची को जन्म लेने के लिए लड़ना स्त्री विमर्श है..और जिस स्थान पर कार्यालयीन भेदभाव होता है वहां अपने अधिकार प्राप्त करना, योग्य पद और वेतन के लिए लड़ना इस संघर्ष का हिस्सा है।

समानता और साझेदारी से सुंदर बनेगी दुनिया

लंबे समय से यूनिवर्सल सिस्टरहुड यानी वैश्विक बहनापे के सिद्धांत पर भी ज़ोर दिया जा रहा है। स्त्री चाहे वो किसी भी समाज, प्रांत, देश, जाति, वर्ण, स्टेटस की है..अपने साथ अन्य स्त्रियों के प्रति सहानुभूति और समानुभूति भाव रखना, उनकी परेशानियों में अपनी तरफ से हरसंभव साथ देना और एक दूसरे के साथ मजबूती से खड़े रहना ही इस वैश्विक बहनापे का मूल आधार है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस और स्त्री-विमर्श की बात करते हुए ये बात बताना जरूरी है कि इस पूरे सिद्धांत और संघर्ष का अर्थ पुरुष द्वेषी होना नहीं है। न ही स्त्रियों को पुरुष से किसी तरह का बैर है न ही वो किसी तरह का बदला चाहती है। वो केवल अपने हिस्से के अधिकार चाहती हैं जिसमें समानता सबसे प्रमुख है। स्त्री हिमायती होने का अर्थ पुरुष विरोधी होना नहीं है और ये बात बार-बार बोलना जरूरी है क्योंकि इस संघर्ष में पुरूषों की भी सहभागिता महत्वपूर्ण है। इतिहास गवाह है कि कई पुरुष भी बेहतरीन समझ रखते हैं नारीवादी संघर्ष को लेकर और उनका योगदान भी अतुलनीय है। इसलिए इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक बार फिर हम ‘समानता, साथ, सम्मान व साझेदारी’ की बात करते हुए आगे बढ़ेंगे।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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