भोपाल| मंदसौर मामले पर सोमवार को गृहमंत्री बाला बच्चन का बयान कांग्रेस के लिए गले की फांस बन गया है। विधानसभा में दिए जवाब पर सरकार की किरकिरी हुई है| जिसको लेकर अब मुख्यमंत्री ने कडा रुख दिखाया है| मुख्यमंत्री ने अधिकारियों और मंत्रियों को कड़े निर्देश दिए हैं कि विधानसभा में सवालों के जवाब में दिग्भ्रमित भाषा का उपयोग ना करें। उन्होंने साफ़ कहा है कि आगे से ऐसी गलती ना हो| पीडब्ल्यूडी मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का बयान सामने आया है, जिसमे उन्होंने कहा है कि विधानसभा में जो जवाब दिए गए उनमें अधिकारियों की गलती है। उन्होंने अधिकारियों को नसीहत देते हुए कहा कि अधिकारी भाजपा की मानसिकता से काम ना करें| मंत्रियों के जवाब से हुई किरकिरी के बाद कुछ अधिकारियों पर गाज गिर सकती है, बुधवार को मीडिया से चर्चा में मंत्री वर्मा ने इसके संकेत दिए हैं|
दरअसल, सोमवार को प्रदेश के गृह मंत्री बाला बच्चन ने विधानसभा में विधायक हर्ष गहलोत के सवाल के लिखित जवाब में कहा था कि मंदसौर के पिपलिया मंडी थाना क्षेत्र में छह जून 2017 को हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिये आत्मरक्षा और सरकारी संपत्ति की सुरक्षा के लिये गोली चलाई गयी थी। गृहमंत्री ने यह भी बताया कि सरकारी संपत्ति की रक्षा के लिये तत्कालीन एसडीएम मल्हारगढ़ श्रवण भंडारी ने कानूनी प्रक्रिया का पालन कर गोली चलाने का आदेश दिया था। इसके अलावा वनमंत्री ने पौधरोपण में भ्रष्टाचार की बात को नकारते हुए अपने जवाब में कहा था कि नर्मदा किनारे पौधरोपण हुआ है| जबकि कांग्रेस विपक्ष रहते हुए इन मामलों पर सरकार को घेरती रही है| आखिर ऐसा क्या हुआ कि सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकार को पीछे हटना पड़ा | सरकार ने अधिकारियों को इसके लिए दोषी ठहराया है, सरकार की किरकिरी होने के बाद मुख्यमंत्री अधिकारियों पर बेहद नाराज हैं उन्होंने अधिकारियों को अल्टीमेटम दिया है|
एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ ने जब पूरे मामले की पड़ताल की तो पता चला इतने संवेदनशील विषय के उत्तर के लिए अधिकारियों ने मंत्री को जानकारी तक नहीं दी। इतना ही नहीं इस मामले की जानकारी मुख्यमंत्री तक को देनी चाहिए थी जो कि नहीं दी गई। मंदसौर मामले का पूरा जवाब पुलिस महानिदेशक के मार्गदर्शन में तैयार हुआ और उसे बिना परीक्षण के जस के तस मंत्री को दे दिया गया। आमतौर पर यह परंपरा रही है कि गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर सरकार के मुखिया और संबंधित मंत्री से गहन चर्चा विचार-विमर्श होता है और परिस्थितियों के अनुसार विषय के उत्तर को बदला जाता है जो इस मामले में नहीं किया गया। हैरत की बात यह है कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर गृहमंत्री ने भी जबाब पढ़ने की जहमत नहीं उठाई। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि विधानसभा में दिया गया सरकार का यह जवाब अब सरकार के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है क्योंकि इस उत्तर में यदि सरकार परिवर्तन करती है तो निश्चित रूप से प्रभावित पक्ष इस जवाब को कोर्ट में अपने बचाव के लिए प्रस्तुत कर सकते हैं।