भोपाल। प्रदेश में सत्ता से बेदखल होते ही भाजपा में बिखराव के हालात बन गए हैं। नेताओं के बीच समन्वय की कमी साफ झलक रही है। जिससे कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में है। हालात यह है कि दूर-दराज से आने वाले पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को भी प्रदेश कार्यालय से खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। उनकी सुनने के लिए कार्यालय में कोई जिम्मेदारी पदाधिकारी मौजूद नहीं है। सिर्फ कार्यालय मंत्री सत्येन्द्र भूषण सिंह यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
प्रदेश में सरकार के रहते सभी पदाधिकारी सक्रिय भूमिका में थे, लेकिन अब बैठकों तक सीमित हो गए हैं। जिसकी वजह यह है कि प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह की ओर से पार्टी नेताओं को चुनाव में कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। जिसकी वजह से पदाधिकारी चुनाव के दौरान हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। वही दूसरी ओर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश भाजपा के नेताओं से खाली समय में पार्टी कार्यालय में उपस्थित रहकर कार्यकर्ताओं से मुलाकात करने को कहा है। लेकिन नेताओं की इसमें भी रुचि नहीं है। प्रदेशाध्यक्ष से लेकर अन्य नेता कार्यालय में बंद कमरे में ही बैठक करते रहते हैं, जबकि आम कार्यकर्ता उनके बाहर आने का इंतजार में बैठा रहता है।
नेताओं को नहीं है भरोसा
पिछले चुनावों में सत्ता और संगठन के नेताओं के बीच जबर्दस्त तालमेल था, वह अब नहीं है। शिवराज सिंह चौहान जब मुख्यमंत्री थे, तब नरेन्द्र सिंह तोमर चुनाव के दौरान संगठन की कमान संभालते थे। खास बात यह है कि वह आम कार्यकर्ता से भी मुलाकात करते थे, लेकिन अब वैसी स्थिति भाजपा में देखने को नहीं मिल रही है।
स्वतंत्र और सतीश का बढ़ा दखल
लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी हाईकमान ने उप्र के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और दिल्ली भाजपा के नेता सतीश उपाध्याय को मप्र में तैनात किया है। इन दोनों नेताओं का दखल ज्यादा ही बढ़ गया है। मप्र भाजपा के हर फैसले में वे दखल दे रहे हैं। जिसकी वजह से मप्र भाजपा के नेता शिवराज सिंह चौहान, नरेन्द्र सिंह तोमर, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने किनारा कर लिया है। दोनों नेताओं के बढ़ते दखल से प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे ने भी दूरी बना ली है। हालांकि ये नेता बैठकों में जरूर उपस्थित होते हैं। वहीं दूसरी ओर संगठन महामंत्री सुहास भगत पार्टी कार्यालय स्थित अपने कंक्ष से बाहर नहीं निकल रहे हैं।