गाय नहीं ‘आवारा’, नेताजी ने जताई आपत्ति तो सरकारी आदेश में हुई तब्दीली

किसी को आप 'आवारा' कहें तो इस बात की पूरी संभावना है कि वो नाराज़ हो जाए। इस शब्द का जो सामान्य अर्थ निकाला जाता है उसके बाद अक्सर ही इसका प्रयोग नकारात्मक रूप में होता है। लेकिन क्या मवेशियों को भी अपने 'आवारा' कहलाने पर एतराज़ हो सकता है ? ये बात लगती तो असंभव है..मगर जब बीजेपी नेता ख़ुद उनकी चिंता करे तो फिर क्या ही कहने। हालाँकि चिंता सारे मवेशियों की नहीं..सिर्फ़ गौमाता की है। क्लासिफिकेशन तो जनाब..पशुओं में भी है। 

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Aawara word replaced with Nirashrit for stray animals : ‘आवारा भँवरे जो हौले हौले गाए’..आपने ये गीत ज़रूर सुना होगा। या फिर राजकपूर पर फ़िल्माया ऑल टाइम सुपरहित गीत ‘आवारा हूँ, या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ’। या देवानंद की मनमौजी अदाओं के साथ ‘ये दिल न होता बेचारा, कदम न होते आवारा, जो खूबसूरत कोई अपना हमसफ़र होता।’

आज हम इन गीतों की बात क्यों कर रहे हैं..और वो भी ‘आवारा’ गीतों की। फिर ये बात भी कि आख़िर क्यों भँवरे को या हीरो को तो अपने ‘आवारा’ कहलाने पर फ़र्क़ नहीं पड़ता…लेकिन मवेशियों को पड़ता है। या शायद यूँ कहें कि मवेशियों को भी पड़े न पड़े..लेकिन बीजेपी के इन नेताजी को ज़रूर पड़ता है। वो भी इतना..कि एक सरकारी आदेश में ही तब्दीली करवा दें।

क्या है मामला

अब जरा मामला तफ़सील से समझते हैं। आपने अक्सर ही ‘आवारा पशु’ ‘आवारा जानवर’ ‘आवारा गाएं’ जैसे शब्द प्रयुक्त होते देखे सुने होंगे। ये बड़ा ही सामान्य लहज़ा रहा है ऐसे जानवरों की बात करने का..जिनका कोई ख़ैरख़्वाह नहीं। जो सड़कों पर या इधर-उधर घूमते रहते हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने ऐसे ‘आवारा मवेशियों’ के नियंत्रण के लिए एक समिति का गठन किया था। लेकिन पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया को ये बात पसंद नहीं आई। उनका कहना है कि इन ‘आवारा मवेशियों’ में ‘गौमाता’ यानी गायें भी शामिल होती हैं और गायों को आवारा कहना न तो उचित है न ही शोभा देता है। इसीलिए उन्होंने ‘आवारा’ शब्द को संशोधित करने के लिए मुख्यमंत्री से आग्रह किया था और उनका आग्रह स्वीकार भी कर लिया गया है। अब ये संशोधित आदेश ‘निराश्रित मवेशी’ लिखकर जारी किया गया है।

सरकारी आदेश में बदला गया ‘आवारा’ शब्द

तो नेताजी की इच्छा पूरी हुई और अब ‘आवारा मवेशी’ ‘निराश्रित मवेशी’ हो गए हैं। इस ख़बर को लिखते हुए मेरे मन में दो विचार आ रहे हैं। पहला तो ये कि काश मवेशी इस बारे में अपनी राय ज़ाहिर कर सकते। दूसरा ये कि अगर ‘आवारा’ शब्द इतना ही आपत्तिजनक है तो सिर्फ ‘गायों’ का ही मुख्य रूप से उल्लेख क्यों किया गया। बेचारे अन्य पशुओं का क्या दोष है ? क्योंकि इनमें अगर गायें सम्मिलित नहीं होती को बीजेपी नेता को ‘आवारा’ शब्द पर आपत्ति भी नहीं होती।

बहरहाल..कहते हैं कि शब्दों पर नहीं भावों पर ध्यान देना चाहिए। तो यहाँ नेताजी की भावनाएँ शायद इसलिए आहत हुई हों क्योंकि ‘आवारा’ शब्द को सामान्यतया अपमानजनक माना जाता है। आम तौर पर आवारा शब्द का इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति या चीज़ के लिए किया जाता है जो बिना किसी निश्चित उद्देश्य या दिशा के इधर-उधर निरर्थक घूमता रहता है। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं..इस शब्द के कुछ दीगर अर्थ भी हैं।

‘आवारा’ लफ़्ज़ के ख़ूबसूरत मायने

अगर आध्यात्मिक या रूहानी दृष्टिकोण से देखते हैं, तो आवारा लफ़्ज़ का गहरा अर्थ होता है। आध्यात्मिक रूप से ‘आवारा’ का अर्थ उस आत्मा या विचार से जुड़ा हो सकता है जो बंधनों से मुक्त है, जो किसी विशेष नियम या परंपरा का पालन नहीं करता। यह एक ऐसी स्थिति का प्रतीक हो सकता है जहां  व्यक्ति अपनी आत्मा को हर प्रकार की सीमाओं से परे अनुभव करता है, जिससे वह किसी भी बंधन या सीमा में बंधा नहीं रहता। यह स्वतंत्रता की भावना और आत्मा की उस स्वतंत्रता की बात कर सकता है, जो बाहरी दुनिया की सीमाओं से परे होती है।

वहीं रूहानी दृष्टिकोण से ‘आवारा’ उस आत्मा की ओर संकेत करता है जो अपने अस्तित्व की खोज में है। यह आत्मा को उस मार्ग पर देख सकता है, जहां वह ईश्वर या सत्य की तलाश में निरंतर यात्रा कर रही है, बिना किसी निश्चित दिशा या मंज़िल के। यह उस व्यक्ति की ओर इशारा कर सकता है जो दुनिया की भौतिक चीज़ों से बंधा नहीं है, बल्कि एक गहरी आत्मीय यात्रा पर है। इस प्रकार ‘आवारा’ शब्द का आध्यात्मिक और रूहानी अर्थ उस स्वतंत्रता, खोज और आत्मा की अनंत यात्रा से जुड़ा है जो किसी भी प्रकार की सीमाओं और बंधनों से परे है। लेकिन फ़िलहाल तो मामला ‘गाय’ से जुड़ा है और जैसा कि कहा जाता है ‘गाय एक राजनीतिक मुद्दा है’..इसलिए सरकारी आदेश में परिवर्तन हो चुका है और अब शासकीय काग़ज़ों में ‘आवारा मवेशी’ ‘निराश्रित मवेशी’ हो गए हैं।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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