कांग्रेस ने पीएम मोदी के ‘Make in India’ कार्यक्रम को बताया विफल, जयराम रमेश ने कहा ‘मेक इन इंडिया बना फेक इन इंडिया’

कांग्रेस नेता ने कहा है कि ‘पिछले दशक में हमारे देश का आर्थिक नीति निर्माण स्थिर, पूर्वानुमान एवं समझदारी से भरा (उदाहरण के लिए, नोटबंदी को याद कीजिए) नहीं रहा है। डर और अनिश्चितता के माहौल के कारण निजी निवेश में वृद्धि बाधित हुई है। कंपटीशन को दबा दिया गया है क्योंकि मोदी जी के क़रीबी एक या दो बड़े बिजनेस ग्रुप्स को समर्थन प्राप्त है और उन्हें ही समृद्ध किया गया है। मेक इन इंडिया सीधे तौर पर फेक इन इंडिया बन गया है।’

Make in India

Make in India : कांग्रेस ने ‘मेक इन इंडिया’ के मुद्दे पर पीएम मोदी को घेरा है। जयराम रमेश ने कहा है कि प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा करते हुए चार उद्देश्य निर्धारित किए थे लेकिन वो इन सभी में नाकाम रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘पीएम ने कहा था कि मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठकर चीन का स्थान लेते हुए भारत को ‘दुनिया की नई फैक्ट्री’ बनाएंगे लेकिन हक़ीक़त में चीन का स्थान लेना तो दूर, हम आर्थिक रूप से उसी पर निर्भर हो गए हैं।’

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लाल किले से ‘मेक इन इंडिया’ का नारा दिया था। इसके बाद 25 सितंबर 2014 को इसे लॉन्च किया गया। मेक इन इंडिया का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण और नवाचार केंद्र बनाना है। इसका मुख्य लक्ष्य देश में निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना, और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना है। इस अभियान के तहत, 25 से अधिक क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई है, जिसमें ऑटोमोबाइल, रक्षा उत्पादन, रेलवे, और जैव प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं।

Make in India को लेकर कांग्रेस ने पीएम मोदी और केंद्र सरकार को घेरा

पूर्व मंत्री और कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने ‘मेक इन इंडिया’ को नाकाम कहा है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि ‘जब नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री ने 2014 में अपने हर इवेंट की तरह बड़े धूम-धाम के साथ ‘मेक इन इंडिया’ की घोषणा की थी, तब चार उद्देश्य निर्धारित किए गए थे। 10 साल बाद उनकी वास्तविक स्थिति क्या है, इसे लेकर एक पड़ताल: पहला जुमला : भारतीय उद्योग की विकास दर को बढ़ाकर 12-14% प्रति वर्ष करना। हक़ीक़त : 2014 के बाद से, मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर औसतन लगभग 5.2% रही है। दूसरा जुमला : 2022 तक औद्योगिक क्षेत्र में 100 मिलियन नौकरियां पैदा करना। हक़ीक़त : मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या 2017 में 51.3 मिलियन थी, जो गिरकर 2022-23 में 35.65 मिलियन हो गई। तीसरा जुमला : 2022 तक और बाद में 2025 तक मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की हिस्सेदारी को GDP के 25% तक ले जाएंगे। हक़ीक़त : भारत के सकल मूल्य वर्धन में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा 2011-12 में 18.1% था। यह गिरकर 2022-23 में 14.3% रह गया है।

उन्होंने कहा कि चौथा जुमला था, मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठकर चीन का स्थान लेते हुए भारत को ‘दुनिया की नई फैक्ट्री’ बनाएंगे। हक़ीक़त : चीन का स्थान लेना तो दूर, हम आर्थिक रूप से उसी पर निर्भर हो गए हैं। चीन से आयात का हिस्सा 2014 में 11% था, जो बढ़कर पिछले कुछ वर्षों में 15% हो गया है। जयराम रमेश ने कहा कि पिछले दशक में हमारे देश का आर्थिक नीति निर्माण स्थिर, पूर्वानुमान एवं समझदारी से भरा (उदाहरण के लिए, नोटबंदी को याद कीजिए) नहीं रहा है। डर और अनिश्चितता के माहौल के कारण निजी निवेश में वृद्धि बाधित हुई है। कंपटीशन को दबा दिया गया है क्योंकि मोदी जी के क़रीबी एक या दो बड़े बिजनेस ग्रुप्स को समर्थन प्राप्त है और उन्हें ही समृद्ध किया गया है। मेक इन इंडिया सीधे तौर पर फेक इन इंडिया बन गया है।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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