PP Sir Merged in Panchtatva : पत्रकारों की पूरी पीढ़ी को आकार देने वाले पुष्पेंद्र पाल सिंह, जो पीपी सर के नाम से मशहूर है..इस फानी दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। मंगलवार को उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। वो अपने पीछे बुजुर्ग माता पिता और दो युवा बच्चों को छोड़ गए हैं। लेकिन उनका परिवार इससे कई बड़ा था। उनके परिवार में हजारों युवा शामिल हैं जिनमें से कई ऊंचे पदों पर आसीन है, कई पढ़ रहे हैं। इसके साथ जाने कितने लोग हैं जो किसी न किसी रूप में पीपी सर से जुड़े रहे।
होली के पर्व पर इस साल एक बहुत अहम रंग जीवन से नदारद हो चुका है। लेकिन उन्होने जिस दिन दुनिया को अलविदा कहा..वो एक विचित्र दुर्योग भी कहा जा सकता है। ये दुर्योग है 5..6..7 का। पांच साल के अंतराल में 6 मार्च को पीपी सर और उनकी पत्नी का देहावसान हुआ और 7 मार्च को अंतिम संस्कार। 6 मार्च 2023 की देर रात पीपी सर ने अंतिम सांस ली और 7 मार्च को उनका अंतिम संस्कार किया गया। इससे ठीक पांच साल पहले 6 मार्च 2018 को ही उनकी पत्नी श्रीमती अनीता सिंह का निधन हुआ था और 7 मार्च को उनका भी अंतिम संस्कार किया गया था। उस समय पीपी सर मध्यप्रदेश माध्यम में प्रधान संपादक के पद पर थे। इतना ही नहीं..उनकी मृत्यु का कारण भी ह्रदयाघात था और पुष्पेंद्र पाल सिंह सर को भी हार्ट अटैक आया। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर्स ने इसे brought dead बताया। पांच साल के अंतराल में उनके दोनों बच्चों जिनमें एक बेटा और बेटी हैं..ने अपने माता पिता को एक ही तारीख और एक ही वजह से खो दिया।
पीपी सर का बेटा अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है और बेटी सॉइकोलॉजी से एमए के फाइनल ईयर में है। उनके बुजुर्ग माता पिता के लिए ये सदमा पहाड़ की तरह है। परिवार के दुख का अंदाज़ा लगाना असंभव है, लेकिन आज पूरे शहर में जैसे एक अजीब सा सन्नाटा तारी है। बहुतों का बहुत कुछ खो गया है। होली के दिन पीपी सर के घर युवाओं का जमावड़ा लगता था। सारे रंग जैसे उनके आंगन में उतर आते और पीपी सर ‘कलर-करेक्शन’ में बेहद माहिर थे। वे अपने छात्रों को और जो उनके छात्र नहीं रहे उन्हें भी सही रास्त दिखाने से कभी पीछे नहीं हटे। इस बार भी होली पर उनके घर उनके चाहने वाले पहुंचेंगे..लेकिन ये दिन रंगों से खाली होगा। अफसोस जताना कितना अफसोसजनक होता है..होली की मुबारकबाद की बजाय एक दूसरे को सब सांत्वना देते नजर आएंगे। इस होली कोई फागुन रंग नहीं झमकेगा..इस होली रंग की बजाय आंखें बरसेंगी। ये होली बेरंग रहेगी।
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श्रुति कुशवाहा
2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।