भोपाल। मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही नियमितीकरण की आस लगाए बैठे कर्मचारियों की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है| रोजगार सहायक, अतिथि शिक्षक एवं समस्त संविदा कर्मचारियों के निमितीकरण का फैसला अब लोकसभा चुनाव के बाद ही होने की संभावना है| सरकार ने अपने वचन पत्र में इन कर्मचारियों के लिए घोषणा की थी और नियमितीकरण के साथ ही नौकरी से निकले गए संविदाकर्मियों को पुन: नौकरी में वापस रखने की घोषणा की थी| सरकार अपने वचन को पूरा करने की बात कर चुकी है, और इसके लिए कैबिनेट कमेटी का गठन भी किया गया है| लेकिन इस कमेटी की बैठक एक माह में नहीं हो सकी है| हालांकि सरकार यह भरोसा भी दिला रही है कि नियमितीकरण का वचन पूरा होगा| फिलहाल संविदाकर्मियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है|
मध्यप्रेदश में संविदा कर्मचारी समेत रोजगार सहायक, अतिथि शिक्षक लंबे समय से अपने हक की लड़ाई लड़ते आ रहे है, पिछली सरकार के खिलाफ भी इन कर्मचारियों ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया था| लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका। लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस मुद्दे को अपने चुनावी वचन पत्र में शामिल किया था| वचन पत्र में कांग्रेस ने रोजगार सहायक, अतिथि शिक्षक एवं समस्त संविदा कर्मचारियों को नियमित करने और जिन संविदा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है, उन्हे पुन: नौकरी में वापस रखने की घोषणा की थी| लेकिन सरकार बनने के दो माह बाद सरकार ने इन पर विचार किया और अब लोकसभा चुनाव के पहले तीन मंत्री, गोविंद सिंह, डॉ. प्रभुराम चौधरी व तरुण भनोट के निर्देशन में एक कमेटी बना दी है। इस कमेटी को 90 दिन में मांगों के संबंध में प्रतिवेदन सौंपना है। कमेटी को नियमितिकरण के साथ कर्मचारियों के अन्य मसलों पर भी निर्णय लेना है| कमेटी के पास कर्मचारी संगठनों के सौ से अधिक सुझाव आ चुके हैं| राज्य के पौने दो लाख से अधिक संविदा कर्मचारी हैं|
कांग्रेस ने वचन पत्र में संविदा कर्मचारियों, अतिथि शिक्षकों को नियमित करने का वादा किया है। संविदा कर्मचारियों का कहना है कि तीन महीने के बजाय लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले कमेटी नियमित करने की रिपोर्ट सरकार को पेश करेगी तो ज्यादा बेहतर होगा। सरकार बनते ही कर्मचारियों को अपनी मांगे पूरी होने की उम्मीद है| कर्मचारियों और सरकार के बीच बैठक भी हो चुकी है, संगठनो ने अपने सुझाव भी दे दिए हैं| लेकिन अभी तक कमेटी की बैठक नहीं हुई है, एक माह बीत चुका है| इससे संसय बन गया है| क्यूंकि एक सप्ताह के भीतर कभी भी लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लग सकती है| इससे पहले अगर आदेश जारी नहीं होते हैं तो नियमितीकरण का फैसला एक बार फिर लटक सकता है| हालांकि समिति बनाकर सरकार ने यह सन्देश दे दिया है कि वह कर्मचारियों की मांगे पूरी कर रही है|