MP News : 80% वाले एडमिशन की रेस में पिछडे, 50 फीसदी वाले छात्र मार रहे बाजी

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। यूजीसी (UGC) की गाइडलाइन का पालन करते हुए उच्च शिक्षा विभाग मप्र (Higher Education Department) के सभी निजी और सरकारी विश्वविद्यालय (Private and government universities) में ओपन बुक सिस्टम (Open book system) से परीक्षा तो करा दी, लेकिन परीक्षा के बाद छात्रों के सामने एक और समस्या खड़ी हो गई है, जिन छात्रों (Student) के 50 प्रतिशत भी आए हैं तो उनको पीजी में प्रोविजनल एडमिशन दे दिया गया है., लेकिन 60 से 80 प्रतिशत अंक वाले छात्रों को प्रतीक्षा सूची में रख दिया गया है, जिससे हजारों छात्रों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है।

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दरअसल उच्च शिक्षा विभाग ने सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को दिशा निर्देश जारी किए थे, जिसमें प्रोविजनल प्रवेश लेने के लिए प्रथम और द्वितीय वर्ष के प्राप्तांकों के गुणानुक्रम के आधार पर प्रवेश देने की बात कही गई थी… लेकिन पीजी में एडमिशन के लिए फॉर्म भरने के बाद भी 60 से 80 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाया है, जिससे छात्र लगातार परेशान हो रहे हैं और कॉलेज के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।एडमिशन ना मिल पाने से छात्र खासे परेशान हैं।

छात्रों का कहना है कि हम लोगों को बताया गया था कि पहले और दूसरे साल के अंकों के आधार पर एडमिशन मिलेगा। फॉर्म में रिजल्ट के ऑप्शन में अवेटिड लिखने के बाद हमें 80 परसेंट अंक होने के बावजूद भी प्रतीक्षा सूची में रख दिया गया है, जबकि जिन लोगों ने ऑप्शन में पास लिखा है, उनके कम प्रतिशत होने पर भी एडमिशन दे दिया गया है। सीटें पहले से ही कम हैं और लगभग पूरी भर चुकी है, ऐसे में सरकार से गुहार है कि हमारी समस्या के निदान करते हुए एडमिशन कराया जाए।

एडमिशन के कारण मेधावी छात्रों का भविष्य खतरे में

वहीं इस पूरे में मामले कॉलेज सरकार की गाइडलाइन का हवाला दे रहे हैं। भले ही उच्च शिक्षा विभाग ने छात्रों के भविष्य को देखते हुए यूजीसी की गाइडलाइन के आधार पर परीक्षा कराई और प्रोविजनल एडमिशन प्रक्रिया शुरु कर दी हो, लेकिन, थोड़ी सी तकनीकी गलती के कारण प्रदेश के हजारों मेधावी छात्रों का भविष्य पर खतरा मंडराने लगा है। अब देखना होगा कि एडमिशन के लिए परेशान मेधावी छात्रों को किस प्रकार राहत मिल सकेगी।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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