कान्हा टाइगर रिजर्व में होने वाले अंतरराष्ट्रीय वन्य जीव कांफ्रेंस में आदिवासियों की अनदेखी, कार्यक्रम में नहीं बुलाया

International wildlife conference 2023 : वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होने कान्हा टाइगर रिजर्व में वन विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय वन्य जीव कांफ्रेंस में मध्यप्रदेश के आदिवासी और स्थानीय समाज को शामिल नहीं करने के बारे में ध्यानाकर्षित किया है।

अपने पत्र में उन्होने लिखा है कि ‘यह सर्वविदित है कि मध्यप्रदेश में २१% आबादी आदिवासी समाज की है और यह प्रकृति प्रेमी समाज राज्य में स्थित १० नेशनल पार्क, ६ टाइगर रिजर्व तथा २४ अभ्यारणो ( कान्हा ,पेंच ,पन्ना ,सतपुड़ा ,संजय डुबरी और बांधवगढ़ )के नजदीक के वन अंचल में हमारे दुर्लभ  बाघों सहित अन्य वन्य प्राणियों के साथ रहता है। मैं स्वयं २२ वर्षो से वन ,वन्य प्राणियों, पर्यावरण और सुशासन के क्षेत्र में कार्यरत हूं। मेरे अनुसार वन्य प्राणियों और वनों का भला नियम कानून के ईमानदारी से पालन और स्थानीय स्तर पर लोगों की भागीदारी कर कार्य करने से होता है।’

‘मध्यप्रदेश सरकार के वन विभाग,स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट SFRI जबलपुर और वन्य प्राणी शाखा द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर आदिवासी अंचल में स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व में दिनांक २७ ,२८ और २९ अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय वन्य जीव कांफ्रेंस आयोजित कर रहे हैं लेकिन आपको सूचित करते हुए दुख होता है कि मध्यप्रदेश के वन विभाग की वन्य प्राणी शाखा और SFRI ने इस आयोजन में आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों और जमीनी स्तर पर वन्य प्राणियों के संरक्षण में जुटे लोगो को आमंत्रित नही किया, जो कि असंवैधानिक और अपमानजनक है। यह इसलिए अस्वीकार करने योग्य और गलत है क्योंकि आदिवासी समाज ही वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण में अहम भूमिका निभाता है। एक साजिश के तहत केवल अंग्रेजी भाषा में कार्यक्रम की पब्लिसिटी की गई और महंगी कीमत पर कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जिससे आदिवासी समुदाय का आसानी से बहिष्कार हुआ। कार्यक्रम में आदिवासी वन वासी समुदाय को सम्मान से आमंत्रित करते तो निश्चित तौर पर मूल्यवान सुझाव और जमीनी अनुभव मिलते जो वास्तविक होते और कार्यक्रम को सफल करते ।इस वक्त मध्यप्रदेश में बाघों,तेंदुओं नीलगाय और हाथियों से इंसानी संघर्ष बढ़ रहा है जिसका निदान वन विभाग इन वनवासी समुदाय के साथ मिलकर ढूंढ सकता था।’

‘यह जांच का विषय है कि कार्यक्रम के आयोजन में जिम्मेदारी निभाने वाले अफसरों ने मध्यप्रदेश सरकार की आदिवासी समाज की भलाई और हितकारी कार्यप्रणाली के विरुद्ध जाकर क्यों कार्य किया ? बाघों और वन्य प्राणियों के संरक्षण में प्राचीन काल से आदिवासी समुदाय की अहम भूमिका रही है और इन्होंने स्वयं विस्थापित होकर ही अपनी भूमि पर वन्यजीवो को आसरा दिया। मुख्यमंत्री शिवराज ने भी इनको सम्मान देते हुए जंगल का स्वामी माना हैं और उन्होंने 89 ब्लॉक में पेसा एक्ट लागू किया। मुझे जानकारी मिली है कि इस कार्यक्रम में जुड़े वन विभाग के ३ बड़े अफसरों को इसी वर्ष रिटायर होना है इसलिए देश भर के वन अफसरों के साथ कथित विदेशी एक्सपर्ट के साथ करोड़ों रुपए का बेशर्मी से विलासिता में खर्च कर करेंगे। इस कार्यक्रम में कई अतिथिगण तो ३ दिन की कांफ्रेंस के उपरांत भी सरकारी खर्चे पर होटलों और रेस्ट हाउस में रुकेंगे जो विधि विरुद्ध है। यह सब गड़बड़ी तब हो रही है जब देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के ड्रीम प्रोजेक्ट कूनो नेशनल पार्क में चीता प्रोजेक्ट के तहत नामीबिया और साउथ अफ्रीका से लाए गए २ चीतों की दर्दनाक मौत हो गई है जिसके लिए वन विभाग की लापरवाही जिम्मेदार है।। सिंह परियोजना के तहत विस्थापित सहारिया आदिवासी समुदाय के लिए चीता प्रोजेक्ट में निर्धारित विकास कार्य नहीं हो रहे। मेरा विनम्र निवेदन है कि माननीय राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव (वन) अपने स्तर पर जांच कर विधि अनुसार कार्यवाही करें।’


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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