भोपाल। 40 साल की बेदाग राजनीतिक जिंदगी, एक बेहद कुशल प्रशासक के रूप में अपनी छाप छोड़ने वाले, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ इन दिनों अपनी राजनीतिक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। बहुमत का आंकड़ा न छू पाने के बावजूद 15 साल की राजनीतिक वनवास के बाद कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल रहे कमलनाथ ने सरकार बना कर अपनी राजनीति की चातुर्य और कुशलता का प्रमाण तो दे दिया लेकिन सरकार को चला पाने में अब उनकी सांसे फूल रही हैं।
दरअसल मध्य प्रदेश की राजनीति में केवल छिंदवाड़ा तक सीमित रहे कमलनाथ के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि उन्होंने मध्य प्रदेश में अपना कोई ग्रुप नहीं बनाया और कभी दिग्विजय सिंह तो कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कभी अजय सिंह और कभी सुरेश पचौरी जैसे नेताओं के ऊपर ही निर्भर रहे। अब दिक्कत यह है कि सरकार तो बन गई और सरकार भी ऐसी बनी कि देश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार राजनीतिक दबाव के चलते सारे मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना पड़ गया। अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं कमलनाथ के सामने बतौर मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों के नाते सबसे बड़ी जिम्मेदारी कांग्रेस को लोकसभा में ज्यादा से ज्यादा सीटें दिलाने की है और ऐसे में प्रशासनिक कसावट कर पाना उनके लिए नामुमकिन हो रहा है।
मुख्यमंत्री सचिवालय के आसपास जिन लोगों ने अपना डेरा डाल दिया है वे कमलनाथ को वास्तविक स्थिति से रूबरू होने ही नहीं दे रहे। मध्यप्रदेश में इन दोनों तबादला उद्योग जोरों पर है और नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव आरोप लगा रहे हैं के तबादलों में ‘ला’ यानी पैसा दे और ‘ऑर्डर’ यानी आदेश ले जा की बनी हुई है। 15 साल की सत्ता वापसी से उत्साहित कांग्रेसी नेता न जाने क्या कर लेना चाहते हैं। और इन सब के बीच मंगलवार को दो मंत्रियों उमंग सिंगार और बाला बच्चन के बयानों ने तो सरकार की किरकिरी करा दी।
मंदसौर में जिस किसान हत्याकांड को लेकर कांग्रेस सत्ता में आई उसी पर पूर्ववर्ती शिवराज सरकार को बाला बच्चन ने गृह मंत्री के रूप में विधानसभा में क्लीन चिट दे दी और शिवराज की जिस नर्मदा परिक्रमा यात्रा में करोड़ों अरबों के घोटाले के आरोपों को लेकर कांग्रेसी चुनाव के दौरान सरकार को कोसते रहे उस पर भी उमंग सिंगार ने सरकार को क्लीन चिट दे दी। कमलनाथ के लिए सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि वे प्रदेश के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं और इसलिए उन्हें किसी गुट विशेष के नेता की समझाइश पर ही काम करना पड़ रहा है। हैरत की बात यह है कि जिस शिवराज सरकार के मुख्यमंत्री सचिवालय के इर्द-गिर्द जमे हुए अफसरों को कांग्रेसी पानी पी पी कर कोसा करते थे वह आज भी सत्ता में है और अंदर खाने की खबर तो यह है कि सरकार आज भी एक पूर्व मुख्य सचिव ही चला रहे हैं। अब देखना यह होगा कि अपने राजनीतिक जीवन के इस अंतिम पड़ाव में कमलनाथ क्या खरे सोने की तरह दब कर एक बार फिर बाहर आते हैं या फिर उनके निष्कलंक रहे राजनीतिक जीवन को कोई खतरा हो सकता है।
सिहंस्थ घोटाले में भी नहीं होगी जांच
सोमवार से शुरु हुए विधानसभा सत्र में कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा ने अपनी ही सरकार से सवाल पूछा था कि क्या राज्य सरकार सिंहस्थ 2016 में हुई आर्थिक अनियमितताओं की जांच करने वाली है, क्या इसमें घोटाला हुआ था। इस पर नगरीय विकास मंत्री जयवर्धन सिंह ने लिखित जवाब में जांच से इनकार किया है। बताते चले कि विपक्ष में रहकर कांग्रेस ने सिंहस्थ घोटाले पर जमकर बवाल मचाया था। कांग्रेस ने सड़क से लेकर सदन तक शिवराज सरकार का घेराव किया था। हालांकि कांग्रेस के सत्ता में आते ही सिंहस्थ घोटाले की जांच की भी बात सामने आई थी।