Love is Not Heart, It’s a Matter of the Brain : क्या हो अगर कहा जाए कि इश्क दिल का नहीं, दिमाग का मामला है। अगर किसी को देखते ही आप दिल धड़कने लगता है और पता चले कि असल में तो सारा खेल दिमाग का है..तो ये बाद भी कम दिल तोड़ने वाली नहीं होगी। ‘प्रेम दिल से जुड़ा होता है’ इस मान्यता को विज्ञान ने खारिज कर दिया है। रिसर्च बताती हैं कि प्रेम और भावनाएं पूरी तरह से हमारे मस्तिष्क की गतिविधि पर निर्भर होती हैं।
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो हमारे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्से सक्रिय हो जाते हैं। उदाहरण के लिए..एक स्टडी में पाया गया कि रोमांटिक प्रेम के दौरान ब्रेन के रिवार्ड सिस्टम से जुड़े हिस्से एक्टिव होते हैं, जो निर्णय लेने और सकारात्मक संकेतों से जुड़े होते हैं। वहीं एक अन्य स्टडी में देखा गया कि प्रेम सिर्फ भावनात्मक मस्तिष्क को ही प्रभावित नहीं करता है, बल्कि high intellectual ability और ज्ञान से संबंधित क्षेत्रों को भी सक्रिय करता है। इस तरह, प्रेम का जुड़ाव दिल से ज्यादा..दिमाग के साथ होता है।
फिल्मी गीतों में ‘दिल’ की जगह ‘दिमाग’ करके देखिए
“दिल दा मामला है” को अब दिमाग से रिप्लेस कर दीजिए। और ज़रा संजीदगी से इस बारे में सोचिए कि अगर फिल्मी गीतों से दिल को हटाकर उसकी जगह दिमाग कर दिया जाए तो बॉलीवुड का इतिहास ही बदल जाएगा। फिर नए गीत कुछ इस तरह होंगे ‘दिमाग तो है दिमाग..दिमाग का ऐतबार क्या कीजे’ ‘ये दिमाग तुम बिन कहीं लगता नहीं, हम क्या करें’ ‘दिमाग दीवाना बिन सजना से मानें न’ ‘मेरे दिमाग में आज क्या है, तू कहे तो मैं बता दू’..इस तरह ये सिलसिला लंबा चलेगा क्योंकि दिल से जुड़े हजारों गाने हैं जो बताते हैं कि प्रेम का आगाज़ और अनुभूति दिल से होती है।
साइंस ने ‘दिल’ तोड़ दिया
विज्ञान ने इस रुमानी खयाल को तोड़ दिया है। साइंस कहता है कि जब हम प्रेम अनुभव करते हैं, तो मस्तिष्क के कुछ विशेष क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ जाती है। इन क्षेत्रों में निग्रेटिव कॉर्टेक्सऔर स्ट्रिएटम प्रमुख हैं जो खुशी, जुनून जैसी भावनाओं से जुड़े होते हैं। इस बात को साबित करने के लिए कई तरह की स्टडी और रिसर्च भी हुई जिनमें मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI) और फंक्शनल MRI का उपयोग किया गया। इन अध्ययन के दौरान देखा गया कि जब लोग अपने किसी खास या प्रिय व्यक्ति के बारे में सोचते हैं या उनके साथ होते हैं, तो उनके मस्तिष्क के ये हिस्से बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। और मस्तिष्क के सक्रिय होने के कारण ही हमारे दिल की धड़कन बढ़ जाती है या अन्य शारीरिक प्रतिक्रिया होती हैं।
असल में सारा खेल है दिमाग का
इसके अलावा, ऑक्सीटोसिन और डोपामिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर भी दिमाग में प्रेम और जुड़ाव की भावना उत्पन्न करने में बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं। ऑक्सीटोसिन, जिसे ‘लव हार्मोन’ भी कहा जाता है, इस भावना को और भी गहरा करता है, जबकि डोपामिन प्यार और जुनून के साथ जुड़ा होता है, जिससे किसी व्यक्ति के भीतर आनंद और संतोष की भावना उत्पन्न होती है। इसलिए, यह कहना कि प्रेम सिर्फ दिल से जुड़ा होता है अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गलत साबित हो चुका है। इंसानी भावनाएं और प्रेम की स्थिति वास्तव में हमारे मस्तिष्क की जटिल गतिविधियों का परिणाम होती हैं। इसलिए अब कभी अगर आप प्रेम में पड़ें तो ये बात ध्यान रखिएगा कि इसके लिए आपका दिल नहीं बल्कि दिमाग ज़िम्मेदार है।